1857 के युद्ध के दौरान लक्ष्मी बाई ने दामोदर की ज़िम्मेदारी अपने विश्वास पात्र सरदार रामचंद्र राव देशमुख सौंपी थी। युद्ध में अपनी जान की आहुति देने के बाद रामचंद्र राव देशमुख दो वर्षों तक दामोदर को अपने साथ लिए ललितपुर जिले के जंगलों में भटकते रहे। अंग्रेजों के डर से कोई उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया। कई बार तो उन्हें खाना तक नसीब नहीं होता था। कई दिन जंगलों में कष्ट झेलने के बाद वे झालरापाटन पहुंचे जहां उन्हें नन्हेखान मिले। नन्हेखान महारानी के मृत्यु के पश्चात झालावाड़-पतन में आकर रहने लगे थे तथा एक अंग्रेज अधिकारी मिस्टर फ्लिंक के दफ्तर में काम करते थे। नन्हेखान ने ही दामोदर को मिस्टर फ्लिंक से मिलवाया था। मिस्टर फ्लिंक दामोदर की पेंशन की व्यवस्था की। पेंशन देने ले लिए अंग्रेज़ सरकार ने दामोदर से सरेंडर करने के लिए कहा।
काफी सिफारिश लगाने के बाद दामोदर राव को 200 रुपया प्रति माह पेंशन मिलने लगी। आपको जानकारी के लिए बता दें कि झांसी की रानी के वंशज इंदौर के अलावा देश के कुछ अन्य भाग में रहते हैं। यह लोग अपने नाम के पीछे झांसीवाला लिखते हैं। दामोदर की चाची और उनकी असली मां ने 1860 में उनका विवाह करा दिया था लेकिन होनी को कुछ और ही मंज़ूर होता है। किसी कारणवश दामोदर की पहली पत्नी का देहांत हो गया है। इसके बाद उनकी दूसरी शादी करा दी जाती है जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है। उनके पुत्र लक्ष्मण राव के बेटे कृष्ण राव और चंद्रकांत राव का वंश भी आगे बढ़ता है और कृष्ण राव के दो पुत्र मनोहर राव, अरूण राव तथा चंद्रकांत के तीन पुत्र अक्षय चंद्रकांत राव, अतुल चंद्रकांत राव और शांति प्रमोद चंद्रकांत राव हुए। लक्ष्मण राव तथा कृष्ण राव इंदौर न्यायालय में टाईपिस्ट का कार्य करते थे। अरुण राव मध्यप्रदेश विद्युत मंडल से बतौर जूनियर इंजीनियर 2002 में सेवानिवृत्त हुए हैं। उनका बेटा योगेश राव सॅाफ्टवेयर इंजीनियर है। बता दें कि, लक्ष्मी बाई पर एक बयोपिक बन रही है जिसमें कंगना रनौत लक्ष्मी बाई का किरदार निभा रही हैं। इस बयोपिक की जनवरी 2019 में रिलीज़ होने की संभावना है।