इस इलाके में जब जानलेवा गर्मी पड़ती है तो लोग पहाड़ों के ऊपर छत पर डालकर समय बिताते हैं और जब हाड़ कपा देने वाली ठंड पड़ती है तब यहां के निवासी इन गुफाओं में रहने चले जाते हैं। एक समय था जब यहां 400 से अधिक गुफाएं थी लेकिन मौजूदा दौर में 90 के आसपास गुफा बची रह गई हैं गोपाल उमा इन गुफाओं में करीब 7 कमरे होते हैं जिनकी लंबाई 2 मीटर और चौड़ाई 20 वर्ग मीटर होती है खास बात यह है कि इन गुफाओं में रहने के लिए हर तरह के साजो सामान होते हैं।
इन गुफाओं में बिजली की सप्लाई भी निर्बाध होती है यहां लोग फ्रीज टीवी इस्तेमाल करते हैं और पानी की सप्लाई की भी व्यवस्था यहां है किचन धुए से काला ना पड़े इसलिए लोग दीवार की ऊपरी परत पर फ़िल्म लगते हैं।
इतिहासकार मानते हैं कि यहां पारसी धर्म के लोग निवास करते थे जिनकी आबादी धीरे-धीरे घट गई हैं और पारसी समुदाय के पूजा पाठ एवं उनके जीवन शैली के निशान आज भी यहां पर मिलते हैं, यहां पारसी समुदाय के मंदिरों के भी निशान हैं लेकिन सातवीं शताब्दी में इस्लाम के बढ़ने के साथ ही यह निशान धीरे-धीरे खत्म होने लगे और पारसी समुदाय भी यहां घटने लगा है।
बता दें कि ईरान में पारसी धर्म सबसे पुराना है। किसी दौर में यहां पारसियो की बड़ी आबादी रहती थी। इसके कुछ निशान आज भी मिलते हैं। इनमें से किचन दोबांदी ऐसी ही एक गुफा है, जिसके बारे में कहा जाता है कि प्राचीन काल में वो पारसियों का मंदिर था, लेकिन 7वीं शताब्दी में इस्लाम के फैलने के बाद ये निशान खत्म होने लगे।