निर्भया के दोषियों को फांसी पर लटकाने के लिए जल्लाद पवन के पास आया कॉल, ऐसे हो रही हैं तैयारियां
इसमें सबसे पहले जेल अधीक्षक कैदी और उसके परिजनों को फांसी की तारीख की सूचना देता है। साथ ही कैदी को डेथ वारंट का ऑर्डर पढ़कर सुनाया जाता है। कैदी की अंतिम इच्छा को भी पूरा किया जाता है, जिसमें अंतिम इच्छा में जेल प्रशासन किसी परिजन से मिलना, कोई स्पैशल डिश खाना तथा कोई धर्मग्रंथ पढ़ना आदि की अनुमति दे सकता है। वहीं एक दिन पहले कैदी की मेडिकल जांच की जाती है। फांसी के वक्त जेल सुपरिटेंडेंट, डिप्टी सुपरिटेंडेंट, असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट एवं मेडिकल आफिसर का उपस्थित रहना अनिवार्य है। जिलाधिकारी द्वारा नियुक्त एक मजिस्ट्रेट कि उपस्तिथि भी अनिवार्य है क्युकि मजिस्ट्रेट ही डेथ वारंट पर साइन ( हस्ताक्षर ) करता है।
कैदी के धार्मिक विश्वास के मुताबिक उसके धर्म का एक पुजारी फाँसी स्थल पर मौजूद रहता है। जेल सुपरिटेंडेंट की मौजूदगी में फांसी देने से एक दिन पहले भी इंजीनियर फांसी स्थल का निरीक्षण करता है। एक डमी फाँसी की सजा दी जाती है। कैदी के लिए रस्सी के दो फंदे रखे जाते हैं। उन पर मोम/मक्खन लगाया जाता है। फांसी के कुछ दिन पहले ही एक मेडिकल आफिसर लटकाने की गहराई का निर्धारण करता है। यह कैदी के वजन के आधार पर निर्धारित होती है। फांसी से पहले काले सूती कपड़े से कैदी के चेहरे को ढका जाना आवश्यक है।
जल्लाद कैदी को बीम के उस जगह तक ले जाता है जहां पर फंदा उससे जुड़ा होता है। कैदी के हाथ सख्ती से बंधे रहते हैं और फंदा उसके गले में डाला जाता है। कैदी के शरीर को 30 मिनट तक फंदे पर लटकाया जाता है। मेडिकल आफिसर द्वारा मृत घोषित किए जाने के बाद ही उसको उतारा जाता है। यदि अंतिम संस्कार के लिए मृतक के रिश्तेदार लिखित रूप से आवेदन करते हैं तो जेल सुपरिटेंडेंट अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए अनुमति प्रदान कर सकता है। फांसी की पूरी प्रक्रिया समाप्त होने के बाद सुपरिटेंडेंट इसकी रिपोर्ट जेल के इंस्पेक्टर जनरल (आइजी) को देता है। ऐसे में जब निर्भया के दोषियों को फांसी दी जाएगी, तो उन्हें भी इस प्रक्रिया से गुजरना होगा।