वो राष्ट्रपति जिसकी जीत का ऐलान हुआ था जामा मस्जिद से, 8 साल की उम्र में छिन गया था पिता का साया सुभाष चंद्र बोस ने आज के दिन यानि 3 मई को
Congress से अलग होकर अपनी अलग पार्टी बनाई थी जिसका मकसद किसी भी तरीके से देश को अंग्रेजों से आजाद करवाना था। इस पार्टी का नाम ‘ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक’ था।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस पार्टी के सदस्य हुआ करते थे लेकिन फिर उन्होंने 1939 में कांग्रेस के भीतर फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की घोषणा की। नेताजी ने बताया कि इस पार्टी को बनाना एक ऐतिहासिक आवश्यकता थी। वामपंथियों का संगठन करना, कांग्रेस में बहुमत प्राप्त करना और राष्ट्रीय आंदोलन को पुनर्जीवित करना ये फॉरवर्ड ब्लॉक के संमुख तीन प्रश्न थे। इस पार्टी की मदद से नेताजी ने लोगों को अपने साथ जोड़ना शुरू किया और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई को एक नई दिशा दी।
अंग्रेजी सरकार नेताजी सुभाष चंद्र बोस से बुरी तरह से परेशान हो चुकी थी और उन्होंने नेताजी को नजरबंद कर दिया था। नेताजी की अगली चाल समझने के लिए अंग्रेजों ने नेताजी के पीछे जासूस लगा दिए थे। लेकिन नेताजी का दिमाग अंग्रेजी सेना से कहीं ज्यादा तेज चलता था और वो बहुत जल्द एक बड़ा धमाका करने वाले थे जिसकी तैयारियां उन्होंने करनी शुरू कर दी थी।
नेताजी का विमान क्रैश नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में कहा जाता है कि उनकी मौत 1945 की विमान दुर्घटना में हुई थी लेकिन कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि यह सब अंग्रेजी हुकूमत की आंख में धूल झोंकने के लिए बस नेताजी की एक चाल थी। ऐसा माना जाता है कि नेताजी इस हादसे में बच निकले थे और फिर भेष बदलकर भारत में आ कर रहने लगे थे।
गुमनामी बाबा 16 सितम्बर सन 1985 में
अयोध्या के सिविल लाइंस में स्थित ‘राम भवन’ में
gumnami baba या भगवन जी की मौत हुई थी। गुमनामी बाबा के बारे में कोई कुछ भी नहीं जानता था। जब लोगों ने गुमनामी बाबा के घर की तलाशी ली तो वहां से मिली चीजों को देखने के बाद लोगों को लगा कि गुमनामी बाबा कोई और नहीं बल्कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही थे। दरअसल गुमनामी बाबा के सामन में सुभाष चंद्र बोस की तस्वीरों के साथ उनका सामान और अन्य चीजें शामिल थी।
World Press Freedom Day: इन पत्रकारों ने लगाई थी अपनी जान की बाजी, कभी नहीं भूल पाएगा देश स्थानीय लोगों की मानें तो गुमनामी बाबा इस इलाके में तकरीबन 15 साल रहे। वे 1970 के दशक में फैजाबाद पहुंचे थे। शुरुआत में वे अयोध्या (
Ayodhya ) की लालकोठी में किरायेदार के रूप में रहा करते थे और इसके बाद कुछ समय प्रदेश के बस्ती शहर में भी बिताया लेकिन यहां लंबे समय तक उनका मन नहीं लगा और वे वापस अयोध्या लौट आए।