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Neera Arya: ये आजाद हिन्द फौज के उन महान सेनानियों में शामिल थीं, जिनका नाम इतिहास में कहीं खो गया

Neera Arya: क्या आप जानते हैं कि नीरा आर्य ने सुभाषचंद्र बोस को बचाने के लिए अपने ही पति की हत्या कर दी थी।

Sep 01, 2021 / 11:58 am

Neelam Chouhan

Neera Arya

नई दिल्ली। Neera Arya: यदि बात करें नीरा आर्य की तो वे बड़ी ही साहसी महिला थीं। नीरा आर्य सुभाषचंद्र बोस के साथ ही आजाद हिन्द फौज में सिपाही हुआ करती थीं। वे झांसी रेजिमेंट की मुख्य सिपाही थीं । इनके साथ ही इनके भाई भी आजाद हिन्द फौज में शामिल थे। जिनका नाम बसंतकुमार था। नीरा आर्य “नीरा नागिनी” नाम से भी उस समय मशहूर थीं। आज हम इनके नाम को भूल से गए हैं। लेकिन नीरा एक अत्यंत साहसी,वीर, स्वाभिमानी और देशभक्त महिला थीं। जिन्होंने देश के आगे कुछ भी नहीं सोंचा। नीरा आर्य का इतिहास हम सबको जानना चाहिए। क्योंकि देश के लिए इन्होंने बहुत कुछ किया है।
नीरा आर्य के जन्म की बात करें तो ये 5 मार्च 1902 में उत्तरप्रदेश के बागपत जिले में इनका जन्म हुआ था। इनके पिता जी जो कि उस समय के सबसे प्रतिष्ठित सेठों में से एक थे। इनके पिता जी का नाम छज्जूमल था, जो जाने-माने व्यापारी थे। नीरा की पढ़ाई कलकत्ता से पूरी हुई। क्योंकि इनके पिता जी का व्यापार वहीं पर था। वे बचपन से ही बहुत तेज रही हैं। नीरा को बहुत भाषाएं बोलनी भी आती थी। जैसे कि हिंदी, अंग्रेजी और बंगाली इन भाषाओं में इनकी अच्छी पकड़ थी। इसके साथ ही ये अन्य भाषाएं बोल और समझ सकती थीं।
नीरा आर्य के काम की जितनी तारीफें की जाए उतनी कम है। साहस के साथ बुद्धिमानी उनमें कूट-कूट के भरी थी। इसलिए वे आजाद हिन्द फ़ौज की सबसे पहले जासूस बनीं थी। नीराआर्य निडर होकर अपने काम करती थीं। इसलिए उनको आजाद हिन्द फ़ौज का सबसे पहला जासूस होने का गौरव मिला था। सबसे बड़ी बात तो ये है कि खुद सुभाष चंद्र बोस ने उनको इतनी बड़ी जिम्मेदारी अपने हाथों से सौपीं थी। उन्होंने अंग्रेजों की जासूसी अपने कुछ साथियों के साथ मिल के की थी। जिनमें सरस्वती राजमणि, मानवती आर्या और खुद सुभाष चंद्र बोस शामिल थे।

नीरा आर्य के विवाहित जीवन की बात करें तो इन्होने श्रीकांत रंजन से विवाह किया था। अपने पेशे से वो अंग्रेजों की सेना में सीआईडी इंस्पेक्टर थे। जब ब्रिटिश सेना को ये बात पता चली कि श्रीकांत रंजन की पत्नी नीरा आर्य आजाद हिन्द फ़ौज में हैं। तो उन्होंने श्रीकांत के साथ साजिश करी कि वे जासूसी करेंगे और नेताजी सुभाषचंद्र बोष को जान से मार देंगें। ये जिम्मेदारी उनको अंग्रेजों के तरफ से मिली थी।
नीरा आर्य जो कि देश के लिए हमेसा जान देने के लिए तैयार रहती थीं। एक बार नीरा के पति ने जासूसी करते हुए नेता जी का पता लगा लिया कि वे कहां हैं और उनपर गोलियों की बौछार कर दी। नेताजी उस समय उनकी गोलियों से तो बच गए थे। लेकिन जब ये बात नीरा को पता चली कि उनके पति ने नेताजी सुभाषचंद्र बोष को मारने की कोशिश की है। तो उन्होंने अपने ही पति की चाकू से हत्या कर दी। नीरा के देश भक्ति का पता इसी बात से चलता है कि देश के आगे उन्होंने किसी को कुछ न समझा। यहां तक ही अपने पति को भी गलती की सजा दी।
काला पानी में भी सजा भी हुई थी
नीरा के ऊपर अपने पति की हत्या का आरोप लगा था। इसलिए उन्हें काला पानी में सजा हुई थी। इसके कुछ दिन बाद उन्हें सेल्युलर जेल जो कि अंडमान में है वहां भेज दिया गया। उनको जेल में अनेक यातनाएं दी गई। उनको बहुत प्रताड़ित किया गया। इस दौरान बाकी कैदियों को तो रिहा कर दिया लेकिन नीरा को जेल में ही बंद रखा।
इसी बीच जेल में नीरा को जेल से आजाद करने का ,लालच भी अंग्रेजों द्वारा दिया गया कि यदि नीरा सुभाषचंद्र बोस के ठिकाने के बारे में उनको बता दें तो उनको जेल से छोड़ दिया जाएगा। लकिन नीरा ने हार नहीं मानी और बोला कि सबको पता है कि नेता जी विमान दुर्घटना में मारे गए हैं। इस बात पर जेलर ने उनको बोला कि वे झूठ बोल रही हैं और नेता जी अभी भी जिंदा हैं। नीरा इस बात का जवाब देते हुए बोलीं कि नेता जी हमेसा जिंदा हैं क्योंकि वे मेरे दिल में रहते हैं।
अग्रेजों का आतंक बढ़ता गया
इस बात को सुन कर जेलर गुस्से से लाल हो गया। और उसने बोला कि हम नेता जी को तुम्हारे दिल से निकाल के रहेंगें। नीरा के साथ इतना बुरा बर्ताव किया गया कि उनके कपड़े तक फाड़ दिए गए। और लोहार को उनके ब्रेस्ट काटने तक का आदेश दे दिया। नीरा के साथ ये बर्ताव सुनते ही दिल दुखी हो जाता है। जेलर की यातनाएं यहीं तक नहीं रुकी। उन्होंने नीरा की गर्दन पकड़ के बोला कि मैं तुम्हारे शरीर के टुकड़े दो अलग हिस्सों में कर दूंगा।
नीरा इतनी साहसी महिला थीं कि इतनी पीड़ा सहने के बाद भी उन्होंने जीवन न छोड़ा बल्कि जोश के साथ आगे बढ़ीं। आजादी के बाद वे हैदराबाद में रहने लगीं। और फूलों को बेंचकर अपनी जिंदगी आगे बढ़ाने लगी। इतने कष्ट के बाद भी उन्होंने सरकारी पेंशन स्वीकार नहीं की।
उनकी छोटी से झोपड़ी भी तोड़ दी गई क्योंकि वे सरकारी जगह में बनी हुई थी। बीमारी के चलते नीरा की मौत 26 जुलाई,1998 को हैदराबाद में हो गई। इतना कष्ट भरा नीरा का जीवन रहा, लेकिन उन्होंने अंतिम सांस तक हार नहीं मानी।

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