इस दिन पूरे ब्रज में मस्ती का माहौल होता है क्योंकि इसे कृष्ण ( Krishna ) और राधा ( Radha ) के प्रेम से जोड़ कर देखा जाता है। यहाँ की होली में नंदगाँव के पुरूष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती हैं, क्योंकि कृष्ण नंदगाँव के थे और राधा बरसाने की थीं। नंदगाँव की टोलियाँ जब पिचकारियाँ लिए बरसाना पहुँचती हैं तो उनपर बरसाने की महिलाएँ खूब लाठियाँ भांजती हैं।
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पुरुषों को इन लाठियों से बचकर महिलाओं को रंगों से भिगोना होता है। यहां के स्थानीय लोगों का विश्वास है कि होली में लाठियों से किसी को चोट नहीं लगती है और अगर चोट लगती भी है तो लोग घाव पर मिट्टी मलकर फ़िर शुरु हो जाते हैं। इस दौरान भाँग और ठंडाई का भी ख़ूब इंतज़ाम होता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण गोपियों को कई तरह से परेशान किया करते थे। कभी उनकी मटकी फोड़ देते तो कभी उन्हें परेशान करने के लिए कोई ओर बहाना ढूंढ़ते। एक बार बरसाना की गोपियों ने मिलकर कृष्ण को सबक सिखाने की योजना बनाई।
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उन्होंने कृष्ण को उनके साथियों के साथ बरसाना होली खेलने के लिए आमंत्रित किया। श्रीकृष्ण और बाकी ग्वाल जब होली खेलने के लिए बरसाना पहुंचे तो उन्होंने देखा कि गोपियां हाथ में लाठियां लेकर खड़ी हैं। लाठियां देख ग्वाल-बाल वहां से नौ दो ग्यारह हो गए।
ग्वालों के भाग जाने के बाद जब श्रीकृष्ण ( Shri Krishna ) अकेले पड़ गए तो गायों ( Cows ) के खिरक में जा छिपे। गोपियों ने कान्हा को ढूंढा और इसके बाद गोपियों ने श्रीकृष्ण के साथ जमकर होली ( Holi ) खेली, तभी से भगवान का एक नाम ब्रज दूलह भी पड़ गया।