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जानिए पोस्टमार्टम करने वाली इस महिला के बारे में, इनकी आपबीती जान भर आएगा गला

पोस्टमॉर्टम हाउस जहां जाने से डरते हैं लोग
वहीं एक महिला बिना झिझके और डरे लाशों का करती है पोस्टमार्टम
कहानी संतोषी दुर्गा की जो महिलाओं को लिए हैं एक मिसाल

Apr 15, 2019 / 10:09 am

Priya Singh

Inspiring Story of santoshi durga a postmortem personnel chhattisgarh

जानिए पोस्टमार्टम करने वाली इस महिला के बारे में, इनकी आपबीती जान भर आएगा गला

नई दिल्ली। आज हम जिस महिला की कहानी आपको बताने जा रहे हैं उनका नाम संतोषी दुर्गा है। इनके पिता छत्तीसगढ़ ( Chhattisgarh ) नरहरपुर ब्लॉक के स्वास्थ विभाग में स्वीपर का काम किया करते थे। दुर्गा बताती हैं कि वे बहुत नशा किया करते थे। घर की बड़ी बेटी दुर्गा अपने पिता को खूब समझाती थीं कि वे इस तरह से नशे में डूबे रहेंगे तो उनकी पांच बहनों की परवरिश और शादी कैसे होगी। दुर्गा इसी तरह अपने पिता को हमेशा समझाती रहीं लेकिन एक दिन वे अपनी छह बेटियों को इस दुनिया में संघर्ष करने के लिए छोड़ गए।

santoshi durga a postmortem personnel

दुर्गा जब भी अपने पिता को लेकर किसी से कोई बात करती हैं तो उनकी आंखें भर आती हैं। छत्तीसगढ़ के उत्तर बस्तर कांकेर जिले के नरहरपुर ब्लॉक की संतोषी दुर्गा आज महिलाओं को लिए एक मिसाल बन गई हैं। बता दें कि अपने पिता के गुज़र जाने के बाद घर की बड़ी बेटी होने के नाते उन्होंने घर की ज़िम्मेदारी बखूबी निभाई। दुर्गा पेशे से एक पोस्टमार्टम ( post mortem ) कर्मी हैं। पिछले 15 वर्षों में उन्होंने लगभग 600 पोस्टमार्टम ( autopsy ) किए हैं।

Inspiring Story of santoshi durga

कहते हैं पोस्टमार्टम का काम बड़ा जोखिम भरा रहता है। कई लोगों का कहना है कि बिना कोई नशा किए पोस्टमार्टम करना बेहद मुश्किल है। लेकिन दुर्गा बिना कोई नशा किए अपने काम को बखूबी कर रही हैं। उनका कहना है कि ‘एक समय ऐसा था कि जब वे भी पोस्टमार्टम के नाम से भी डरती थीं। लाश को देखकर उनके हाथ-पैर कांपते थे। उन्हें भी किसी के मृत शरीर को देखकर डर लगता था।’ लेकिन उन्हें घर की ज़िम्मेदारी का एहसास था जिसने उन्हें ये काम करने के लिए हिम्मत दी।

santoshi durga lady postmortem personnel

उन्होंने इस काम को कर पूरे समाज को ही नहीं, ज़िले ही नहीं बल्कि पूरे देश को यह दिखा दिया कि बिना कोई नशा किए पोस्टमार्टम किया जा सकता है। दुर्गा ने जब यह काम करना शुरू किया तो उनका प्रमुख मकसद था कि वह अपने पिता की शराब छुड़वा सकें। दुर्गा ने अपने पिताजी से शर्त लगाई कि वो बिना नशा किए अगर पोस्टमार्टम कर लेंगी तो वे शराब छोड़ देंगे। उनका पोस्टमार्टम का सबसे पहला केस साल 2004 में था। ये काम करके दुर्गा ने अपने पिताजी से शर्त जीत ली और उन्हें शराब छोड़ने के लिए प्रेरित करती रहीं। अभी जहां दुर्गा पर तीन बहनों की शादी की ज़िम्मेदारी है वहीं उन्हें अपने तीन बच्चों का भविष्य भी संवारना है। लेकिन उनका कहना है कि उनका काम उनके लिए सबसे आगे है जिसे वे सेवा भाव से पूरा करती हैं।

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