दुर्गा जब भी अपने पिता को लेकर किसी से कोई बात करती हैं तो उनकी आंखें भर आती हैं। छत्तीसगढ़ के उत्तर बस्तर कांकेर जिले के नरहरपुर ब्लॉक की संतोषी दुर्गा आज महिलाओं को लिए एक मिसाल बन गई हैं। बता दें कि अपने पिता के गुज़र जाने के बाद घर की बड़ी बेटी होने के नाते उन्होंने घर की ज़िम्मेदारी बखूबी निभाई। दुर्गा पेशे से एक पोस्टमार्टम ( post mortem ) कर्मी हैं। पिछले 15 वर्षों में उन्होंने लगभग 600 पोस्टमार्टम ( autopsy ) किए हैं।
कहते हैं पोस्टमार्टम का काम बड़ा जोखिम भरा रहता है। कई लोगों का कहना है कि बिना कोई नशा किए पोस्टमार्टम करना बेहद मुश्किल है। लेकिन दुर्गा बिना कोई नशा किए अपने काम को बखूबी कर रही हैं। उनका कहना है कि ‘एक समय ऐसा था कि जब वे भी पोस्टमार्टम के नाम से भी डरती थीं। लाश को देखकर उनके हाथ-पैर कांपते थे। उन्हें भी किसी के मृत शरीर को देखकर डर लगता था।’ लेकिन उन्हें घर की ज़िम्मेदारी का एहसास था जिसने उन्हें ये काम करने के लिए हिम्मत दी।
उन्होंने इस काम को कर पूरे समाज को ही नहीं, ज़िले ही नहीं बल्कि पूरे देश को यह दिखा दिया कि बिना कोई नशा किए पोस्टमार्टम किया जा सकता है। दुर्गा ने जब यह काम करना शुरू किया तो उनका प्रमुख मकसद था कि वह अपने पिता की शराब छुड़वा सकें। दुर्गा ने अपने पिताजी से शर्त लगाई कि वो बिना नशा किए अगर पोस्टमार्टम कर लेंगी तो वे शराब छोड़ देंगे। उनका पोस्टमार्टम का सबसे पहला केस साल 2004 में था। ये काम करके दुर्गा ने अपने पिताजी से शर्त जीत ली और उन्हें शराब छोड़ने के लिए प्रेरित करती रहीं। अभी जहां दुर्गा पर तीन बहनों की शादी की ज़िम्मेदारी है वहीं उन्हें अपने तीन बच्चों का भविष्य भी संवारना है। लेकिन उनका कहना है कि उनका काम उनके लिए सबसे आगे है जिसे वे सेवा भाव से पूरा करती हैं।