कैथल के रामकरण ने अपनी भैंस मूर्ति को अपने परिवार के सदस्य की तरह मानते थे। यही वजह है कि मूर्ति की मौत पर उन्होंने मृत्युभोज रखा। आम तौर पर मृत्युभोज परिवार के सदस्यों के निधन के बाद रखा जाता है।
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सभी रिश्तेदारों और सगे संबंधियों को बुलाया
रामकरण ने मूर्ति के मृत्युभोज के लिए अपने सभी रिश्तेदारों और सगे संबंधियों को भी न्योता दिया। खास बात यह है कि मूर्ति के मृत्युभोज में दूर-दराज से रामकरण के रिश्तेदार शामिल भी हुए।
मिठाई समेत तरह-तरह के पकवान बने
रामकरण ने पूरे सम्मान के साथ मूर्ति के लिए मृत्युभोज रखा। भोज में मिठाई के साथ-साथ तरह-तरह के पकवान बनवाए गए और सभी सगे-सम्बन्धी पहुंचे। रामकरण और परिजनों ने बताया कि भैंस मूर्ति ने 18 बच्चे दिए और लगभग 18 साल तक उनके परिवार को दूध पिलाकर लालन पालन किया।
रामकरण की मानें तो उसके बच्चे मूर्ति का दूध पीकर ही बड़े हुए हैं। उसकी दी हुई कटड़ियां कई लाख रुपए की बिकी। जिस भैंस ने उनके परिवार के लिए इतना किया तो उसका सम्मान तो बनता है।
रामकरण ने कहा कि, जिस तरह से एक इंसान की मृत्यु होती है तो संस्कार स्वरूप जितने भी क्रियाकर्म होते हैं वो सभी मूर्ति के संस्कार में भी किये गए। जैसे परिवार में एक बुजुर्ग के सम्मान में मृत्युभोज का आयोजन किया जाता है वैसे ही भैंस मूर्ति के सम्मान में भी किया गया।
सुल्तान की मौत पर भी गम में डूबा था हरियाणा
बता दें कि पिछले साल कैथल के सुल्तान झोटे की भी मौत हो गई थी। दिल का दौरा पड़ने से उसकी मौत हो गई थी। कैथल के बुढ़ाखेड़ा गांव के सुल्तान बुल ने कैथल का ही नहीं, बल्कि पूरे हरियाणा का नाम रोशन किया था।
उनके मालिक नरेश का कहना था कि सुल्तान जैसा ना कोई था और शायद ना कोई होगा। उसकी मौत पर पूरा हरियामा गम में डूबा था।
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