डॉक्टर मुथुलक्ष्मी रेड्डी अपनी पूरी ज़िंदगी महिलाओं के अधिकार के लिए लड़ती रहीं। इतना ही नहीं एक सबल महिला होने के नाते उन्होंने देश की आज़ादी की लड़ाई में ही हिस्सा लिया। 30 जुलाई 1886 में मद्रास (अब तमिलनाडु) में जन्म लेने वाली मिथु को बचपन से ही अपने हक के लिए लड़ने की आदत लग गई थी। उनके पिता चेन्नई के महाराजा कॉलेज के प्रिंसिपल हुआ करते थे लेकिन फिर भी उन्हें पड़ने के लिए कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। परिवार उन्हें पढ़ाना चाहता था लेकिन समाज के नियम-कानून उनके रास्ते में आ रहे थे। इसके बावजूद उनकी मां चंद्रामाई उन्हें पढ़ने भेजा।
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नहीं किया माता-पिता को निराश
माता-पिता ने जब मुथु को समाज से लड़कर पढ़ने भेजा तब मुथु ने भी ठानी थी कि वे कभी भी अपने परिजनों को निराश नहीं करेंगी। वैसा हुआ भी मुथु डॉक्टर ग्रेजुएट की डिग्री हासिल करने वाली देश की पहली महिला बनीं। बता दें कि अपनी मेडिकल ट्रेनिंग के दौरान उन्हें फ्रीडम फाइटर सरोजिनी नायडू सरोजनी नायडू से मिलने का मौका मिला। ये पहला ऐसा मौका था जब उन्होंने किताबों से बाहर निकलकर देश की महिलाओं के लिए कुछ करने का सोचा। कांग्रेस नेता सरोजिनी नायडू से मिलने के बाद उन्होंने देश की महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए लड़ाई की। इंग्लैंड कजाकर पढ़ने के बजाय उन्होंने वूमेंस इंडियन असोसिएशन के साथ काम किया।
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अपने कामों के चलते साल 1927 में मुथुलक्ष्मी को देश की पहली महिला विधायक का मौका मिला। विधायक के पद पर रहते हुए उन्होंने महिलाओं के अधिकारों को संसद तक पहुंचाया और उनके इन्हीं कामों के लिए उन्हें पद्म भूषण अवार्ड से सम्मनित किया गया। साल 1954 में ‘अड्यार कैंसर इंस्टिट्यूट'(Adyar Cancer Institute) बनवाकर उन्होंने समाज को वरदान दिया। आज यहां सालभर में 80 हजार कैंसर मरीजों का इलाज होता है।