एक मछुवारे परिवार से ताल्लुक रखने वाले अब्दुल बचपन तंगी में बीता। घर चलाने के लिए वो पढ़ाई के साथ-साथ काम में अपने पिता जी का हाथ भी बताया करते थे। उनके पिताजी ज़्यादा पढ़े लिखे नहीं थे लेकिन अब्दुल कलाम को उनके जीवन की कुछ शिक्षा उनके पिता ने दी। वे उन्हें हमेशा याद दिलाते थे कि “जीवन में आगे बढना है तो संघर्ष का साथ कभी नहीं छोड़ना, जितना अधिक संघर्ष करोगे उतना अधिक सफलता भी मिलेगी।”
बचपन से ही अब्दुल कलाम पायलट बनने का सपना देखते थे। इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने देहरादून एयरफोर्स अकादमी में फॉर्म लेकिन उनका सिलेक्शन नहीं हुआ। सपने के टूट जाने पर भी वे हताश नहीं हुए। ज़िंदगी को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने विज्ञान की दुनिया में कदम रखा। फिर क्या था पूरी दुनिया में एक वैज्ञानिक के रूप में मिसाइल मैन के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनके जीवन की इस घटना से सीख मिलती है कि कहीं फेल हो जाओ तो रुको नहीं हताश न हो आगे बढ़ते रहो सफलता ज़रूर मिलेगी।
सबके प्रति दया का भाव
जरूरतमंदों के साथ-साथ अब्दुल कलाम जीवों के लिए दयालु थे। किस्सा उन दिनों का है जब वे DRDO में कार्यरत थे। DRDO की बिल्डिंग की सुरक्षा के उसपर टूटे कांच लगाए जा रहे थे। जब इस बारे में अब्दुल कलाम को पता चला तो उन्होंने इस काम को तुरंत रोकने के लिए कहा। उन्होंने कहा ऐसा करेंगे तो जो पक्षी दिवार पर बैठते है वे शीशे के टुकड़े से घायल हो सकते हैं और काम रोक दिया गया।
ये तब की बात है जब उन्हें वाराणसी में आईआईटी (BHU) के दीक्षांत समारोह में बुलाया गया था। स्टेज पर 5 कुर्सियां लगाई गईं और उनके बीच में एक बड़ी कुर्सी लगाई गई। उस बड़ी कुर्सी को देखकर उन्होंने उसपर बैठने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा मैं “आप लोगों के बराबर का ही व्यक्ति हूं अगर सम्मान करना है तो इसपर कुलपति जी को बैठाईए।” इस तरह अब्दुल कलाम अपने को सबके बराबर ही मानते थे।