बाद में पोटेशिम नाइट्रेट, सल्फर और चारकोल को मिलाते समय दुर्घटनावश बारूद की खोज हुई तो इस आयोजन की शक्ल बदल गई। अब बारूद के मिश्रम को बांस में भरकर आग में फेंका जाने लगा। इससे धमाके में तेजी आई और आकर्षक चिंगारी भी देखने को मिली। चीन में करीब पांचवी सदी से इन पटाखों को छोड़ना हर धार्मिक उत्सव का अनिवार्य अंग हो गया। चीन से बाहर बारूद और पटाखे ले जाने का श्रेय खोजी यात्रियों को खासकर मार्कोपोलो को है।
वहां से पटाखा पहले मध्यपूर्व पहुंचा और बाद में यूरोप। ब्रिटिश स्कॉलर रॉजर बेकन ने पटाखे निर्माण में प्रयोग किए जाने वाले बारूद में काफी सुधार किए। वर्ष 1550 में बारूद में 75 प्रतिशत पोटेशियम नाइट्रेट, 10 प्रतिशत गंधक और 15 प्रतिशत चारकोल मिलाया जाने लगा जो आज तक प्रचलित है। अमरीका में आतिशबाजी सत्रहवीं सदी में शुरू हुई। ब्रिटेन में वर्ष 1730 में आतिशबाजी का सार्वजनिक आयोजन किया गया। शुरूआत के पटाखे और आतिशबाजी में सिर्फ नारंगी व सफेद चिंगारी निकलती थी। उन्नीसवीं सदी में रंगीन आतिशबाजी शुरू हो गई और अलग-अलग कलर्स के लिए अलग-अलग केमिकल्स मिलाए जाने लगे।