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ये है पूरा मामला
पशु पालन विभाग ने ग्लैंडर्स फारसी बीमारी का शक होने पर जनवरी में ढिकौली के एक व्यक्ति की घोड़ी का सीरम सैंपल लेकर हिसार स्थित अश्व अनुसंधान केंद्र भेजा था।
जांच रिपोर्ट आने पर घोड़ी में ग्लैंडर्स फारसी बीमारी की पुष्टि हो गई। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डा. रमेश चंद्र ने राजकीय पशु चिकित्सालय ढिकौली के पशु चिकित्साधिकारी को इसे मारने की कार्रवाई शुरू कराने का आदेश दे डाला।
मौत वारंट से पहले ही घोड़ी बेच दी गई
पशु चिकित्साधिकारी डा. नेहा ङ्क्षसह ने मुख्य पशु चिकित्साधिकारी को रिपोर्ट दी कि ढिकौली के श्रीपाल ने घोड़ी को 30 जनवरी को मेरठ के लावड़ निवासी साबिर को बेच दिया है।
इसके बाद मुख्य पशु चिकित्सक ने फोन पर बात की तो साबिर ने घोड़ी फरवरी के प्रथम सप्ताह में बरेली के व्यक्ति को बेचने की जानकारी दी।
खास बात यह है कि साबिर ने अधिकारियों को ये भी बताया कि उन्हें खरीदार का नाम और पते की जानकारी नहीं है। ऐसे में अब पशुपालन विभाग के अफसरों को समझ नहीं आ रहा कि इस घोड़ी को वो कहां ढूंढें।
ढूंढकर मारने के निर्देश
मुख्य पशु चिकित्साधिकारी के मुताबिक घोड़ी के लापता होने की सूचना पर विभागीय निदेशक ने इसे ढूंढकर मारने के निर्देश दिए हैं।
इसलिए जारी किया मौत का वारंट
बरेली के मुख्य पशु चिकित्साधिकारी को भी घोड़ी की तलाश कराने को लिखा। ताकि दूसरों में ये बीमारी न फैल सके। दरअसल ग्लैंडर्स फारसी लाइलाज है और पशुओं से इंसान में पहुंचने का खतरा बना रहता है।
ये हैं लक्षण
अश्व प्रजाति के पशुओं में इस बीमारी में फेफड़ों व नाक में गांठें, घाव, खांसी, नाक से स्राव, तापमान 105 डिग्री सेल्सियस तक होना प्रमुख लक्षण हैं। खास बात यह है कि जानवरों से इस बीमारी के इंसानों में
बीमार घोड़ों को मजिस्ट्रेट व पुलिस मौजूदगी में जहर का इंजेक्शन देकर मारा जाता है। इस पूरी प्रकिया की फोटोग्राफी होती है। शव गहरे गड्ढे में दबाया जाता है। तीन साल पहले बागपत में आठ घोड़ों को ऐसे ही मारा गया था।
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