बता दें कि, राजू वहां के ठेकेदारों की कार्यशैली से अब भी नाराज हैं, भले ही उन्हें वहां से लौटे तीन दशक बीत गए हों। वह बताते हैं कि ठेकेदार 1000 रुपये पेशगी के तौर पर देकर अपने जाल में फंसा लेते हैं और उसके बाद मजदूरी की रकम में से पेशगी की किस्त के तौर पर काटते हैं, जब भी काम छोड़ने की बात करो, धमकाते हैं। राजू बताते हैं कि जो भी मजदूर काम छोड़कर दूसरे स्थान पर जाने की बात जैसे ही करता है, ठेकेदार धौंस जमाता है। पहले तो पेशगी में दी गई रकम को दोगुनी से ज्यादा बताकर वापस मांगता है। मजदूर के पास उतनी रकम होती नहीं, उसके बाद भी मजदूर जाने की जिद करता है तो उससे मारपीट तक की जाती है।
राजू का कहना है कि, बुंदेलखंड में पत्थर के कारोबार में सक्रिय कई ठेकेदारों और दबंगों के नाम अब भी राजू को याद है। वह कहते हैं कि पी.वी. राजगोपाल ने झांसी जिले के कस्बे मोंठ के पास स्थित दासना व अन्य गांव से एक दिन में ढाई सौ से ज्यादा परिवारों को मुक्त कराया था। प्रशासन के सहयोग के चलते मजदूरों के गिरवी रखे गहने भी सूदखोर ने लौटा दिए थे। राजू इस समय साढ़े चार एकड़ जमीन के मालिक हैं। उनके तीन बेटे और एक बेटी है। बेटी की शादी हो चुकी है। राजू अब पूरी तरह निश्चिंत हैं। उनका कहना है कि कभी भी दिहाड़ी के लिए परेशान न होकर स्थायी आमदनी का जरिया खोजना ज्यादा सही होता है।