हम जानते हैं कि माहवारी एक सामान्य सी बात है जिसके बारे में अब समाज में लोग खुलकर बात करते हैं। हालांकि इसमें और भी ज्यादा खुलकर सोचने की आवश्यकता है क्योंकि यह एक नैचुरल प्रॉसेस है और इसमें कोई अजीब लगने वाली बात नहीं है।
पहले के जमाने में माहवारी के दौरान औरतों को कई तरह के नियमों का पालन करना पड़ता था और यह स्थिति आज भी है, लेकिन इसमें कमी आ रही है। इसके साथ ही कई ऐसी जगहें हैं जहां लोग इसे लेकर आज भी कुछ ज्यादा ही सोचते हैं।
परिवर्तन या नई सोच को अपनाने से ये कतराते हैं और पुरानी रीतियों का ही पालन करते हैं। जिन्हें इन सबका पालन करना पड़ता है उन पर क्या बीतती है इससे ये बेखबर रहते हैं।
तमिलनाडु के अनिकडु गांव में इसी पीरियड्स के चलते एक बच्ची को अपनी जान गंवानी पड़ी। 12 साल की इस बच्ची को बेवजह दर्दनाक मौत का सामना करना पड़ा। आइए जानते हैं कि पूरा माजरा क्या है?
हम जानते हैं कि पीरियड्स में कई जगह छुआछूत के चलते महिलाओं को घर से बाहर अलग रखा जाता है। अनिकडु गांव में रहने वाली 12 साल की विजया को इस 12 नवंबर को पहली बार पीरियड्स आए।
परिवार के लोगों ने उसे घर में घुसने नहीं दिया। मकान के पास ही बनी एक छोटी सी झोपड़ी में उसके रहने का इंतजाम किया गया। इस समाज के नियम के मुताबिक अब विजया को कुल 16 दिन उसी झोपड़ी में रहना था।
16 नवंबर इलाके में चक्रवात ने दस्तक दिया।मौसम विभाग ने पहले ही लोगों को चेतावनी जारी की थी कि ऐसी परिस्थिति में लोग घर से बाहर न निकलें। तेज हवाएं चलने लगी। इतना सब होने के बावजूद विजया को उसके घरवालों ने उसी झोपड़ी में अकेला छोड़ दिया।
हवा इतनी तेज थी कि झोपड़ी के पास स्थित एक नारियल का पेड़ उखड़ गया और सीधे झोपड़ी के ऊपर जा गिरा। विजया चुपचाप उस झोपड़ी में सो रही थी। पेड़ के अचानक गिरने से उसी के नीचे दबकर उसकी मौत हो गई। सुबह लोगों ने उसे मृत पाया।
क्या गलती थी इस मासूम की जिसकी कीमत उसे इस तरह से अपनी जान देकर चुकानी पड़ी? क्या इस तरह की प्रथाएं किसी की जान से बढ़कर है? वाकई में यह सोचने वाली बात है।