ये शैलचित्र प्रागैतिहास से एतिहासिक काल के बीच के हैं। इतिहासकारों के हिसाब से ये शैलचित्र 20 हजार वर्ष पुराने हैं। प्रागैतिहास में मनुष्य के रहने का पहला घर पहाडिय़ा रही हैं। इसलिए इन्हें शैलाश्रय कहा जाता है। उस समय भाषा का विकास नहीं हुआ था इसलिए मनुष्य अपनी भावनाओं को चित्रों के माध्यम से प्रदर्शित करता था। इन शैलचित्रों में मानव की दैनिक दिनचर्या जैसे शिकार, घुड़सवारी, नृत्य आदि से संबंधित चित्र है। चित्रों के माध्यम से स्पष्ट है कि इस दौर में मनुष्य ने समूह में रहना शुरू कर दिया था। पूरी पहाड़ी पर ये शैलचित्र हैं लेकिन अधिकतर शैलचित्र सुरक्षा के अभाव में मिटते जा रहे हैं।
आदमगढ़ पहाड़ी में लगभग 4 किमी क्षेत्र में 20 शैलाश्रय हैं। शैलाश्रयों में पशु जैसे वृषभ, गज, अश्व, सिंह, गाय, जिराफ, हिरण आदि योद्धा, मानवकृतियां, नर्तक, वादक तथा गजारोही, अश्वरोही एवं टोटीदार पात्रों का अंकन है। इन चित्रों को खनिज रंग जैसे हेमेटाइट, चूना, गेरू आदि में प्राकृतिक गोंद, पशु चर्बी के साथ पाषाण पर प्राकृतिक रूप से प्राप्त पेड़ों के कोमल रेशों अथवा जानवरों के बालों से बनी कूची की सहायता से उकेरा गया है।
प्रागैतिहासिक से ऐतिहासिक समय के ये शैलचित्र हैं। ये शैलचित्र हमारी सांस्कृतिक धरोहर के रूप में है। इनका संरक्षण करना चाहिए। जिससे आने वाली पीढिय़ां भी इन्हें देख सकें। डॉ. हंसा व्यास, विभागाध्यक्ष, इतिहास, नर्मदा कॉलेज