मंदिर में पूजा करने वाले भवानी शंकर तिवारी बताते हैं कि बात करीब १९७० की है, शहर से करीब चार किमी. दूर और नर्मदा किनारे एक गुफा थी, जिसमें हिंगलाज देवी की मूर्ति विराजमान थी, इसकी पूजा की जाती थी, यहां रहने वाले बाबा इसकी मूर्ति की पूजा करते थे, इस दौरान नर्मदा में आई बाढ़ के बाद यहां सबकुछ नष्ट हो गया गुफा भी नष्ट हो गई और मूर्ति का भी पता नहीं चला।
करीब १९९० तक सबकुछ इसी तरह से चला। इस दौरान नर्मदा नदी पर रेलवे पुल के निर्माण का कार्य शुरु किया गया। यहां पर पिलर बनाने के दौरान काफी परेशानी का सामना ठेकेदार को करना पड़ा। दरअसल जहां पिलर का निर्माण कराया जाना था, वहां पर पानी खत्म नहीं हो रहा था, जिस कारण लंबे समय तक कार्य प्रभावित रहा। कहा जाता है कि इसके बाद देवी जी ने एक दिन ठेकेदार को स्वप्न में आकर यहां पर मंदिर होने की बात कहते हुए इसे बनवाने की बात कही। ठेकेदार के माध्यम से उस जगह पर मंदिर का निर्माण किया गया। कहा जाता है उसके बाद पुल निर्माण में कोई बाधा नहीं आई।
शहर से दूर हरियाली के बीच स्थित इस मंदिर परिसर में सुखद आनंद की अनुभूति होती है। यही कारण है कि यहां पर हर दिन बड़ी संख्या में शहर और आसपास के लोग दर्शनोंं के लिए पहुंचते हैं।
माता हिंगलाज के दरबार में चैत और क्वांर माह में विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है। जिसमें प्रसादी ग्रहण करने के लिए दूर दराज से भक्त पहुंचते हैं। वहीं नर्मदा किनारे बसे इस मंदिर में पहुंचकर सुख आनंद लेते हैं।