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होशंगाबाद

देश के प्रसिद्ध व्यंग्यकार की जन्मभूमि बना यह जिला , आज भी जुड़ी उनकी यादें

– प्रसिद्ध साहित्यकार की पुण्यतिथि
– इन्होनें दिलाया व्यंग्य को विधा का दर्जा

होशंगाबादAug 09, 2019 / 09:47 pm

poonam soni

harishankar parsai

देश के प्रसिद्ध व्यंग्यकार की जन्मभूमि बना यह जिला , आज भी जुड़ी उनकी यादें

होशंगाबाद। मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिला देश के सुप्रसिद्ध साहित्यकारों की जन्मभूमि रही है। यहां माखनदादा, भवानी प्रसाद मिश्र और ( Harishankar Parsai:) की जन्मभूमि व कर्मभूमि के नाम जानी जाती है। कल यानि 10 अगस्त को व्यंगकार Harishankar Parsai जी की पुण्यतिथि भी है। इनका जन्म होशंगाबाद के जमानी गांव में हुआ था।
इन्होनें उठाई ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज
जिले के साहित्यकारों के साहित्य की देश में एक अलग पहचान है। भारतीय आत्मा के नाम से प्रसिद्ध जिले के व्यंगकार हरिशंकर परसाई, माखनलाल चतुर्वेदी और कवि पंडित भवानी प्रसाद मिश्र ऐसे हिंदी साहित्यकार जिन्होंने कविता, लेख के माध्यम से ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद किया था।
इन्होनें दिलाया विद्या का दर्जा
Harishankar Parsai हिंदी के पहले रचनाकार थे। इनका जन्म का जन्म 22 अगस्त, 1924 को हुआ। वहीं मृत्यू 10 अगस्त, 1995) में हुआ। हरिशंकर परसाई हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और व्यंगकार थे। उनका जन्म जमानी, होशंगाबाद, मध्य प्रदेश में हुआ था। वे हिंदी के पहले रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के-फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमारे मन में गुदगुदी ही पैदा नहीं करतीं बल्कि हमें उन सामाजिक वास्तविकताओं के आमने-सामने खड़ा करती है, जिनसे किसी भी व्यक्ति का अलग रह पाना लगभग असंभव है। लगातार खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाइयों को उन्होंने बहुत ही निकटता से पकड़ा है। सामाजिक पाखंड और रूढि़वादी जीवन-मूल्यों के अलावा जीवन पर्यन्त विस्ल्लीयो पर भी अपनी अलग कोटिवार पहचान है। उड़ाते हुए उन्होंने सदैव विवेक और विज्ञान-सम्मत दृष्टि को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी भाषा-शैली में खास किस्म का अपनापा है, जिससे पाठक यह महसूस करता है कि लेखक उसके सामने ही बैठा है।ठिठुरता हुआ गणतंत्र की रचना Harishankar Parsai ने किया जो एक व्यंग है

नागपुर से की शिक्षा प्राप्त
गाँव से प्राम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे नागपुर चले आये थे। ‘नागपुर विश्वविद्यालय’ से उन्होंने एम. ए. हिंदी की परीक्षा पास की। कुछ दिनों तक उन्होंने अध्यापन कार्य भी किया। इसके बाद उन्होंने स्वतंत्र लेखन प्रारंभ कर दिया। उन्होंने जबलपुर से साहित्यिक पत्रिका ‘वसुधा’ का प्रकाशन भी किया, परन्तु घाटा होने के कारण इसे बंद करना पड़ा। हरिशंकर परसाई जी ने खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाइयों को बहुत ही निकटता से पकड़ा है। उनकी भाषा-शैली में ख़ास किस्म का अपनापन है, जिससे पाठक यह महसूस करता है कि लेखक उसके सामने ही बैठा है।

18 वर्ष की उम्र में की नौकरी
मात्र अठारह वर्ष की उम्र में हरिशंकर परसाई ने ‘जंगल विभाग’ में नौकरी की। वे खण्डवा में छह माह तक बतौर अध्यापक भी नियुक्त हुए थे। उन्होंन ए दो वर्ष (1941-1943 में) जबलपुर में ‘स्पेस ट्रेनिंग कॉलिज’ में शिक्षण कार्य का अध्ययन किया। 1943 से हरिशंकर जी वहीं ‘मॉडल हाई स्कूल’ में अध्यापक हो गये। किंतु वर्ष 1952 में हरिशंकर परसाई को यह सरकारी नौकरी छोड़ी। उन्होंने वर्ष 1953 से 1957 तक प्राइवेट स्कूलों में नौकरी की। 1957 में उन्होंने नौकरी छोड़कर स्वतन्त्र लेखन की शुरूआत की।
पहली रचना रही ये
हरिशंकर परसाई जी की पहली रचना “स्वर्ग से नरक जहां तक” है, जो कि मई 1948 में प्रहरी में प्रकाशित हुई थी, जिसमें उन्होंने धार्मिक पाखंड और अंधविश्वास के ख़िलाफ़ पहली बार जमकर लिखा था। धार्मिक खोखला पाखंड उनके लेखन का पहला प्रिय विषय था। वैसे हरिशंकर परसाई कार्लमाक्र्स से अधिक प्रभावित थे। परसाई जी की प्रमुख रचनाओं में “सदाचार का ताबीज” प्रसिद्ध रचनाओं में से एक थी जिसमें रिश्वत लेने देने के मनोविज्ञान को उन्होंने प्रमुखता के साथ उकेरा है।
सम्मान और पुरस्कार
साहित्य अकादमी पुरस्कार – ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ के लिए
शिक्षा सम्मान – मध्य प्रदेश शासन द्वारा
डी.लिट् की मानद उपाधि – ‘जबलपुर विश्वविद्यालय’ द्वारा
शरद जोशी सम्मान

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