माना जाता है कि निस्वार्थ भाव से नर्मदा और गंगाजी के दर्शन मात्र से जीवन में होने वाले कष्टों से मुक्ति मिलती है। वहीं गंगाजल के स्पर्श से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। पाठ, यज्ञ, मंत्र, होम और देवदर्शन आदि समस्त शुभ कर्मों से भी जीव को वह गति नहीं मिलती, जो गंगाजल के सेवन मात्र से ही प्राप्त होती है।
ज्योतिषाचार्य के अनुसार काम, क्रोध, मद, लोभ, मत्सर, ईष्र्या आदि समस्त विकारों का नाश करने में गंगा के समान और कोई नही मानी जाती। गंगा दशहरे के दिन व्यक्ति को किसी भी पवित्र नदी पर जाकर स्नान, ध्यान तथा दान करना चाहिए। इससे वह अपने सभी पापों से मुक्ति पाता है, यदि कोई पवित्र नदी तक नहीं जा पाता, तब वह अपने घर के पास की किसी नदी पर माँ गंगा का स्मरण करते हुए स्नान करे और यह भी संभव नहीं हो तो माँ गंगा की कृपा पाने के लिए इस दिन गंगाजल का स्पर्श और सेवन अवश्य करना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार गंगा अवतरण के इस पावन दिन गंगा जी में स्नान एवं पूजन-उपवास करने वाला व्यक्ति दस प्रकार के पापों से छूट जाता है। इनमें से तीन प्रकार के दैहिक, चार वाणी के द्वारा किए हुए एवं तीन मानसिक पाप, ये सभी गंगा दशहरा के दिन पतितपावनी गंगा स्नान से धुल जाते हैं।गंगा में स्नान करते समय स्वयं श्री नारायण द्वारा बताए गए मन्त्र-”? नमो गंगायै विश्वरूपिण्यै नारायण्यै नमो नम:” का स्मरण करने से व्यक्ति को परम पुण्य की प्राप्ति होती है।
गंगा दशहरे के दिन श्रद्धालुजन जिस भी वस्तु का दान करें, उनकी संख्या दस होनी चाहिए और जिस वस्तु से भी पूजन करें, उनकी संख्या भी दस ही होनी चाहिए, ऐसा करने से शुभ फलों में वृद्धि होती है। दक्षिणा भी दस ब्राह्मणों को देनी चाहिए। जब गंगा नदी में स्नान करें, तब दस बार डुबकी लगानी चाहिए।
कहा जाता है कि हिंदुओ में मृत्यु से ठीक पूर्व गंगा जल की कुछ बूंदें मुंह में पड़ जाना मोक्ष का पर्याय माना जाता है। इसके जल में स्नान करने से जीवन के सभी संतापों से मुक्ति मिलती हैं। जीवन में एक बार गंगा जी में स्नान करना जरूरी होता है। लेकिन जो जिस नर्मदा नगरी में रहता है वह उसी नर्मदा को स्वच्छ करने में पीछे है। नर्मदा समर्थकों का कहना है कि जब श्रृद्धालु शहर में नर्मदा स्नान करने पहुंचते है तो वह पूजा में चढऩे वाले सामग्री, पॉलीथिन को यही नदी में छोड़ जाते है उससे नर्मदा स्वच्छ नही होती। इसलिए गंगा दशहरा पर स्नान के साथ संकल्प भी ले की नर्मदा को स्वच्छ बनाएगें।
आचार्य विकास तिवारी के अनुसार सरकारी प्रयास के साथ इस पवित्र नदी को स्वच्छ बनाए रखने की जिम्मेदारी हम सब की भी है। किसी भी प्रकार से इसे दूषित न करने का संकल्प लेना होगा। नदी की स्वच्छता को बनाए रखने के लिए गंगाजी में स्नान करते समय साबुन का प्रयोग नहीं करें और न ही साबुन लगाकर कपड़े धोना चाहिए। गंगा दशहरा तन के साथ-साथ मन की शुद्धि का पर्व भी है, इसलिए इस दिन गंगाजी में खड़े होकर अपनी पूर्व में की हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगनी चाहिए और भविष्य में कोई भी बुरा कार्य नहीं करने का संकल्प भी करें।