जंगल में जीवित रहने और शिकार करने की कला सीख रही लैला
दो महीने पहले ही बाघिन लैला को कॉलर लगाकर बाड़े से जंगल में छोड़ा गया है। इससे पहले उसे बाड़े में चार महीने तक जंगल में जीवित रहने और शिकार करने की कला सिखाई जा चुकी है। एसटीआर में बाघों के मुकाबले बाघिन की संख्या लगभग आधी है। इसलिए बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से बाघिन शावक को सतपुड़ा लाया गया। एसटीआर के क्षेत्र संचालक एसके सिंह ने कहा- बाघिन लैला के आने से बाघों का कुनबा बढ़ेगा।
बाडे़ में रहने के दौरान दो नर बाघ बाघिन से मिलने आने लगे। रात भर बाघ बाड़े के बाहर से बाघिन को देखते व दहाड़ते रहते थे। बाघिन को कॉलर लगाकर जुलाई के अंत में जंगल में छोड़ा। बाघिन अब बाघों के संपर्क में है। अगस्त में उसने मैटिंग भी की है।
बांधवगढ़ में एक मादा बाघिन ने तीन लोगों का शिकार किया था। वह आदमखोर हो गई थी, जिसे ग्रामीण मारने उतारू थे। रिजर्व प्रबंधन ने बाघिन को वन विहार भोपाल भेज दिया। बाघिन शावक को रिजर्व प्रबंधन ने बाड़े में रखा था। बाघिन अपने शावकों को दो साल तक शिकार करना व जंगल में जीने की कला सिखाती है।
फरवरी/मार्च 2019 में बाघिन शावक को सतपुड़ा लाया गया। चूरना में एक हेक्टेयर के बाडे़ में रखा।
बाघिन शावक आदमखोर तो नहीं। पर्यटकों पर हमला तो नहीं करेगी। यह जांचने बाड़े में पुतले बांधे और टूरिस्ट वाहनों में पुतले बैठाकर घुमाए गए। जिसकी तरफ बाघिन ने देखा तक नहीं।
शिकार करना सिखाने के लिए पाड़ा व चीतल छोड़े गए।
ाबोरी एसडीओ धीरज सिंह चौहान बताते हैं- जंगल में जाने के बाद वह शिकार नहीं कर रही थी। उसे भोजन के लिए मांस दिया जाता था। १ महीने तक शिकार नहीं किया। सूचना आई कि बाघिन की लोकेशन डेढ़ दिन से एक ही जगह पर है। तब लगा कहीं बाघिन का शिकार तो नहीं हो गया, या उसकी मौत तो नहीं हो गई। टीम लेकर मौके पर पहुंचा तो बाघिन ने सांभर का शिकार किया हुआ था। डेढ़ दिन से वहीे खा रही थी। इसके बाद ३ से ४ दिन के अंतर से उसने ६ सांभर मारे। अब वह जंगल में अपनी टेरीटरी बना चुकी है।