टाइप 1 डायबिटीज और उसकी गंभीरता Type 1 diabetes and its severity
टाइप 1 डायबिटीज (Type 1 Diabetes) एक ऑटोइम्यून रोग है, जिसमें शरीर का इम्यून सिस्टम पैंक्रियास में इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं को नष्ट कर देता है। इसके कारण मरीजों को जीवन भर इंसुलिन के इंजेक्शन और इम्यूनोसप्रेसेंट्स की जरूरत होती है। इस प्रकार की डायबिटीज के इलाज के लिए अब तक जो सबसे कारगर उपाय था, वह इसलेट-सेल ट्रांसप्लांट था, लेकिन डोनर कोशिकाओं की कमी के कारण यह एक सीमित विकल्प था।स्टेम सेल तकनीक का क्रांतिकारी उपयोग Revolutionary use of stem cell technology
इस उपचार में, चीनी शोधकर्ताओं ने महिला की अपनी स्टेम कोशिकाओं का उपयोग किया, जिन्हें इंसुलिन बनाने वाली इसलेट कोशिकाओं में परिवर्तित किया गया। यह प्रक्रिया महिला की आंतरिक मांसपेशियों में इंजेक्ट की गई, और इसे MRI के माध्यम से मॉनिटर किया गया। यह नया तरीका साबित हुआ कि स्टेम कोशिकाओं को इस प्रकार से उपयोग करना एक प्रभावी उपचार हो सकता है।Type 1 diabetes : महिला अब इंसुलिन पर निर्भर नहीं
यह उपचार करने के बाद, महिला में दो महीने के भीतर ही पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का उत्पादन शुरू हो गया, जिससे उसे बाहरी इंसुलिन की जरूरत नहीं पड़ी। अब वह एक साल से अधिक समय से इस उपचार के परिणाम का आनंद ले रही हैं। यह इलाज न सिर्फ उनकी जीवनशैली को सामान्य कर रहा है, बल्कि उन्हें डायबिटीज (Type 1 Diabetes) की स्थिति से मुक्त भी कर दिया है। यह भी पढ़ें : Diabetes Reversal : क्रांतिकारी खोज, दवा ने डायबिटीज को दी मात, इंसुलिन उत्पादन 700% तक बढ़ा
स्टेम सेल उपचार की प्रक्रिया Stem cell treatment process
स्टेम सेल उपचार (Stem Cell Therapy) में पहले मरीज से स्वस्थ स्टेम कोशिकाएं एकत्रित की जाती हैं। इसके बाद इन्हें रसायन चिकित्सा (केमोथेरेपी) या विकिरण से उपचारित किया जाता है ताकि रोगग्रस्त कोशिकाएं नष्ट हो सकें। इसके बाद स्वस्थ कोशिकाओं का प्रत्यारोपण किया जाता है, जिससे शरीर की प्राकृतिक कोशिकाओं की पुनरुत्पत्ति होती है और मरीज की स्थिति में सुधार होता है।वैश्विक विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
विश्वभर के विशेषज्ञ इस उपचार के परिणामों को बेहद सकारात्मक मान रहे हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ अल्बर्टा के ट्रांसप्लांट सर्जन जेम्स शापिरो ने इस उपचार को “अद्भुत” करार दिया और कहा कि इस महिला का डायबिटीज पूरी तरह से उलट गया है। वहीं, जापान के क्योटो विश्वविद्यालय के डायबिटीज विशेषज्ञ डॉ. दैसुकि याबे ने इसे “क्रांतिकारी” कदम बताया और कहा कि यदि यह प्रक्रिया अन्य मरीजों पर भी सफल रही तो यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी।सावधानियां और भविष्य की योजना
हालांकि परिणाम उत्साहजनक हैं, लेकिन शोधकर्ता अभी भी सतर्क हैं। चूंकि महिला पहले ही लीवर ट्रांसप्लांट के कारण इम्यूनोसप्रेसेंट्स पर थीं, इस कारण यह देखना बाकी है कि क्या नए इसलेट कोशिकाओं पर भी वही ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया होगी जो पहले की कोशिकाओं पर थी। इस शोध टीम की अगुवाई करने वाले डॉक्टर डेंग होंगकू ने इस साल के अंत तक इस परीक्षण का विस्तार करने की योजना बनाई है, जिसमें 20 प्रतिभागियों को शामिल किया जाएगा। यह भी पढ़ें : अगर पिता को है Type 1 Diabetes तो बच्चों में बीमारी का खतरा दोगुना
उपचार के दो साल बाद का महत्व
महिला की हालत का अगला महत्वपूर्ण मील का पत्थर नवंबर में आएगा, जब वह उपचार के दो साल पूरे करेंगी। अगर उनकी स्थिति स्थिर रहती है, तो यह टाइप 1 डायबिटीज के इलाज में एक बड़ी सफलता साबित हो सकती है और दुनिया भर में इस उपचार के प्रयोग को बढ़ावा मिल सकता है। इस नई तकनीक की सफलता से न सिर्फ टाइप 1 डायबिटीज के इलाज में उम्मीदें बढ़ी हैं, बल्कि यह भविष्य में स्टेम सेल उपचार के अन्य उपयोगों के लिए भी दरवाजे खोल सकता है।