आयरलैंड के यूनिवर्सिटी कॉलेज कॉर्क के वैज्ञानिकों ने पाया है कि भले ही आनुवांशिकी, वातावरण और अन्य कारक भी SAD में भूमिका निभाते हैं, आंतों के बैक्टीरिया का असंतुलन भी इस विकार को बढ़ा सकता है। अध्ययन में पाया गया कि SAD से पीड़ित लोगों की आंतों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया स्वस्थ लोगों से अलग होते हैं।
इस अध्ययन में छह स्वस्थ लोगों और छह SAD रोगियों के मल के नमूनों का विश्लेषण किया गया। इन नमूनों को 72 प्रयोगशाला चूहों में डालकर उनके प्राकृतिक बैक्टीरिया मार दिए गए। इसके बाद, इन चूहों को दो समूहों में बांटा गया – एक समूह को SAD रोगियों के बैक्टीरिया और दूसरा समूह को स्वस्थ लोगों के बैक्टीरिया दिए गए।
अध्ययन के परिणाम चौंकाने वाले थे। जिन चूहों को SAD रोगियों के बैक्टीरिया मिले, उनके मल में तीन प्रकार के बैक्टीरिया का स्तर अलग था। साथ ही, उनके व्यवहार में भी बदलाव आया। स्वस्थ लोगों के बैक्टीरिया वाले चूहें जल्दी ही नए चूहों से घुलने-मिलने लगे, लेकिन SAD रोगियों के बैक्टीरिया वाले चूहें कई दिनों तक उनसे डरते रहे।
अध्ययन का निष्कर्ष यह है कि आंतों के बैक्टीरिया और मानसिक विकारों के बीच संबंध को और अधिक खोजना जरूरी है। यह खोज भविष्य में नए उपचार और आहार योजनाओं के लिए राह खोल सकती है, जिससे हमारी आंतों और दिमाग दोनों को स्वस्थ रखा जा सके।
कुछ महत्वपूर्ण बिंदु: आंतों की सेहत और दिमाग के बीच मजबूत संबंध है।
अस्वस्थ आंतों से सामाजिक चिंता विकार जैसी मानसिक समस्याएं हो सकती हैं।
SAD रोगियों की आंतों में बैक्टीरिया का असंतुलन पाया गया है।
इस असंतुलन को बदलने से सामाजिक भय को कम करने में मदद मिल सकती है।
आंतों की सेहत बनाए रखने से हम दिमाग को भी स्वस्थ रख सकते हैं।
अस्वस्थ आंतों से सामाजिक चिंता विकार जैसी मानसिक समस्याएं हो सकती हैं।
SAD रोगियों की आंतों में बैक्टीरिया का असंतुलन पाया गया है।
इस असंतुलन को बदलने से सामाजिक भय को कम करने में मदद मिल सकती है।
आंतों की सेहत बनाए रखने से हम दिमाग को भी स्वस्थ रख सकते हैं।