विशेषज्ञों ने बताया कि यह एक प्रकार से आंखों की गंभीर बीमारी है। एक दशक पूर्व तक यहां इस बीमारी के पूरे महीने में एक से दो केस ही मिलते थे लेकिन अब हर माह 50 से 60 नए केस सामने आ रहे हैं। उनमें भी ज्यादातर 12 से 20 साल के बच्चे व युवा शामिल हैं। हालांकि ज्यादातर मरीज दवा लेने या फिर कॉर्नियल कोलेजन क्रॉस लिंकिंग ( सी3आर) प्रोसिजर से ठीक हो जाते हैं लेकिन कुछ केस में कॉर्निया ट्रांसप्लांट करवाना ही विकल्प रह जाता है। इस बीमारी के कारण एसएमएस अस्पताल में हर माह 4 से 5 कॉर्निया ट्रांसप्लांट करने पड़ रहे हैं।
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ऐसा होता है इलाज: मरीज को शुरुआत में दवा देते हैं फिर अत्याधुनिक मशीनों से कॉर्नियल टोपोग्राफी की जांच करते हैं, जिसमें कॉर्निया के आकार का पता चलता है। जांच में कॉर्निया 400 माइक्रोन से पतला पाया जाता है तो सी3आर प्रोसिजर भी नहीं कर पाते। ऐसे में गंभीर केराटोकोनस होने पर अंत में कॉर्निया ट्रांसप्लांट ही करवाना पड़ता है।आंखों की जांच करवाते रहें
यहां राजस्थान से ही नहीं, हरियाणा, उत्तर प्रदेश समेत अन्य पड़ोसी राज्यों से भी केराटोकोनस के मरीज आ रहे हैं। गर्मी के सीजन में इसके केस ज्यादा आते हैं। आंखों की एलर्जी इसका मुय कारण है। इस बीमारी का जल्दी निदान व उपचार जरूरी है। इस तरह की बीमारियों से बचाव के लिए समय-समय पर आंखों की जांच करवाते रहें। -डॉ पंकज शर्मा, विभागाध्यक्ष, नेत्र रोग विभाग, एसएमएस अस्पताल