अपनी तरह का पहला अध्ययन
भारत के प्रमुख हेल्थकेयर शोध संगठनों में से एक एसएमएसआरसी, विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित यूएस-आधारित क्रानर्ट स्कूल ऑफ मैनेजमेंट और पड्र्यू यूनिवर्सिटी ने भारत में कोरोना वायरस (Corona Virus in India) के प्रभाव को समझने के लिए भारतीय चिकित्सकों के बीच कोविड-19 के दौरान प्रैक्टिस करने के उनके तरीकों को समझने के लिए अपनी तरह का यह पहला अध्ययन किया है। अध्ययन विभिन्न पहलुओं पर गौर करते हुए क्लिनिक या अस्पताल जाकर इलाज करवाने की बजाय घर बैठे टेलीकम्यूनिकेशन के जरिए डॉक्टर से सलाह-मशविरा करने के संबंध में एक महत्वपूर्ण बदलाव का खुलासा करता है। अध्ययन में देश के 80 शहरों और कस्बों से 2100 से अधिक चिकित्सकों से प्राप्त प्रतिक्रिया और फोन साक्षात्कार से जुटाए सांख्यिकीय नमूनों के आधार पर महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए।
महिलाएं यहां भी रहीं आगे
परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों, बढ़ती उम्र, स्वास्थ्य संबंधी जोखिम और उनकी लोकेशन (जैसे कोरोना संक्रमण के रेड जोन) को ध्यान में रखते हुए महिला चिकित्सकों ने टेलीमेडिसिन को प्राथमिकता दी। जबकि उनके साथी पुरुष चिकित्सक इस दौरान भी फिजिकल तौर पर मरीजों को देखने के लिए अपनी क्लिनिक और अस्पताल जाते रहे। पड्र्यू विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर डॉ. रीटाब्राडा कर का कहना है कि टेलीमेडिसिन अपनाने वाली महिला डॉक्टर्स की इस प्रवृत्ति को उनके पुरुष समकक्षों के अनुपात में यूं समझा जा सकता है कि भारतीय महिलाएं परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों, पुरुषों की रुढि़वादी सोच और परिवार के लिए जोखिम के प्रति पुरुषों से ज्यादा संवेदनशील होती हैं। लॉकडाउन, के दौरान हमने देखा कि घर पर होने के बावजूद भारतीय पुरुष घर के कामों में हाथ बंटाने से कतराते हैं। यानी उन पर इस दौरान दोहरी जिम्मेदारी थी। परिवार और प्रोफेशन दोनों में सामंजस्य बिठाने के लिए महिला चिकित्सकों ने टेलीमेडिसिन को अधिक अपनाया। ऐसे ही युवा चिकित्सकों ने टेलीमेडिसिन को अपनाया क्योंकि वरिष्ठ चिकित्सकों में अधिक से अधिक यथास्थिति और एक संज्ञानात्मक पूर्वाग्रह की प्रवृत्ति होती है जहां वे परिवर्तन के लिए प्रतिरोधी होते हैं और काम करने के अपने वर्तमान तरीके को ही जारी रखना चाहते हैं। इसलिएए युवा चिकित्सक नए दृष्टिकोण और कार्यप्रणाली के लिए अधिक अनुकूल हैं। इसी तरह, महानगर के चिकित्सक अपने गैर-महानगरीय साथियों की तुलना में टेलीमेडिसिन की ओर अधिक बढ़ रहे हैं।
पीएमएस में पुरुष चिकित्सक आगे
जहां टेलीमेडिसिन में महिलाओं ने पुरुष चिकित्सकों से बाजी मार ली वहीं प्रैक्टिस मैनेजमेंट सॉफ्टवेयर (पीएमएस) के उपयोग में पुरुष अपनी समकक्ष महिला चिकित्सकों से काफी आगे रहे। यह प्रवृत्ति संबंधित जोखिम से बचने की ओर इशारा करती है। महिला चिकित्सकों द्वारा एक नई लेकिन सुरक्षित तकनीक को अपनाने में पुरुष डॉक्टर्स की तुलना में उतनी तेज नहीं हैं जितना कि उनके समकक्ष पुरुष साथी। वे पेशे से जुड़ी किसी भी नई तकनीक को लेकर बहुत ज्यादा कॉन्शियस रहती हैं। एसएमएसआरसी के महाप्रबंधक अनीश मित्रा का इस बारे में कहना है कि जैसे मोबाइल कॉल और सामान्य लोकप्रिय सोशल मीडिया ऐप कोविड-19 के दौरान टेलीमेडिसिन के रूप में डॉक्टरों की मदद करते हैं वैसे ही ‘न्यू नॉर्मल’ के रूप में टेलीमेडिसिन के प्रति यह बड़ा बदलाव को अपनाने का समय है।
चिकित्स्कों का समय बचे ऐसे विकल्प चाहिए
मित्रा आगे कहते हैं कि जब हम पीएमएस आधारित टेलीमेडिसिन ट्रेंड को अपनाते हैं तो न्यू नॉर्मल के रूप में यह एक समान स्थिति है जो सभी प्रकार के चिकित्सकों में देखी जाती है। चिकित्सकों के लिए पीएमएस आधारित टेलीमेडिसिन प्लेटफॉर्मों के अनगिनत लाभों के बावजूद, कोविड-19 में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए हमें साथ मिलकर, ऐसे प्लेटफॉर्म और विकल्प विकसित करने की जरूरत है जो चिकित्सकों के लिए आसान हो और उनका समय भी बचाए। भारत में रोगी-चिकित्सक अनुपात में गहरी असमानताएं हैं ऐसे में इस तरह के उपायों की यहां अधिक जरुरत है। राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (एनडीएचएम) जैसी पहल भी विशिष्ट टेलीमेडिसिन-आधारित अनुप्रयोगों के लिए एक बेहतरीन प्रेरणा साबित होगी।
अध्ययन के महत्तवपूर्ण तथ्य
01. 50 फीसदी युवा चिकित्सकों ने 44 फीसदी वरिष्ठ चिकित्सकों की तुलना में कोरोना संक्रमण के दौरान टेलीमेडिसिन को अपनाया
02. 58 फीसदी से भी अधिक महिला चिकित्सकों ने भी अपने 44 फीसदी पुरुष समकक्षों की तुलना में सेलुलर ऑडियो कॉल, सोशल मीडिया ऐप जैसे व्हाट्सए, टेलीग्राम और फेसबुक के जरिए ही रोगियों को देखा
03. 52 फीसदी मेट्रो शहरों के फिजिशियंस की तुलना में 44 फीसदी गैर-मेट्रो फिजिशियंस टेलीमेडिसिन को अपनाने में पीछे रहे।