पेट का कैंसर कई सालों में धीरे-धीरे विकसित होता है, इसलिए शुरुआत में इसके कोई निश्चित लक्षण देखने को नहीं मिलते हैं। सामान्य लक्षणों में भूख न लगना, वजन कम होना, पेट में दर्द, सीने में जलन, पाचन में गड़बड़ी, उबकाई, खून के साथ या बिना खून के उलटी आना, पेट में सूजन या फ्लूइड बनना या मल में खून आना शामिल हैं। इनमें से कुछ लक्षणों का उपचार कराया जाता है, क्योंकि ये आते-जाते रहते हैं। कुछ लक्षण उपचार के बावजूद बने रहते हैं। अगर ऐसा होता है, तो इससे सबसे अच्छे तरीके से निपटने के लिए अपने डॉक्टर से बात करें। आपका डॉक्टर खानपान में बदलाव जैसी साधारण चीजों की सलाह दे सकता है या फिर जब लक्षण बने रहें, तो और अधिक जांच की सलाह दे सकता है।
पेट के कैंसर के होने की पुष्टि और वह किस स्टेज पर है, इसकी जानकारी के लिए डॉक्टर कुछ टेस्ट कराने की एडवाइज देता है।
-अपर जीआई एंडोस्कोपी,
-एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड
-बायोप्सी या एक्स-रे
-सीटी
-पीईटी या एमआरआई स्कैन जैसे इमेजिंग टेस्ट आदि।
तम्बाकू या शराब का सेवन करने वाले लोगों के पेट के कैंसर से ग्रस्त होने की ज्यादा आशंका होती है। कई मामलों में आनुवांशिक कारण भी कैंसर के लिए जिम्मेदार होते हैं। फलों और सब्जियों का बहुत कम मात्रा में सेवन करने वाले लोगों के साथ ही सॉल्टेनड मीट ज्यादा खाने वालों को भी यह समस्या हो सकती है।
ेटेस्ट के बाद कैंसर के स्टेज के आधार पर सर्जरी, कीमोथेरेपी, इम्युनोथेरेपी या टारेगेटेड थेरेपी जैसे विकल्पों की सीरीज में से सबसे उपयुक्त उपचार की सुविधा मुहैया करवाई जाती है।
शुरुआती स्टेज के पेट के कैंसर के मामले में सर्जरी के बाद कीमोथेरेपी/रेडियोथेरेपी से व्यक्ति का कैंसर ठीक होने की संभावना होती है। हालांकि एडवांस्ड मेटास्टैटिक या आवर्तक पेट के कैंसर से पीडि़त मरीजों के लिए कैंसर की बायोलॉजी के आधार पर कीमोथेरेपी को ट्रास्टुजुमाब, इम्युनोथेरेपी जैसी एडवांस्ड दवाओं के साथ सप्लीमेंट दिए जा सकते हंै। ये उपचार कई मामलों में जीवन को बेहतर और लंबे समय तक जीने में मदद करता है। कुछ उपचार कैंसर को पूरी तरह से ठीक करने के लिए होते हैं, जबकि अन्य उपचार कैंसर को नियंत्रित करते हैं।
पेट के कैंसर के साथ जीवित रहना एक शारीरिक चुनौती हो सकती है, क्योंकि यह जीवन के मूलभूत पहलू यानी खानपान में बदलाव करती है। मरीजों को खानपान और जीवनशैली में बदलाव करने की जरूरत होती है और अक्सर यह बदलाव इस गति से होते हैं, जिसके लिए वे तैयार नहीं होते। इससे आपको परेशानी हो सकती है, लेकिन डॉक्टरों की सलाह और आपका देखभाल करने वालों से यह आसान हो सकता है।
जब बात खाने की हो, तो याद रखने के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण चीज यह है कि ऐसा खाना चुना जाए, जो पचाने में आसान हो और हर बार खाने के बाद आपके पेट पर कम बोझ पड़े। इनमें ऐसे खाने शामिल हो सकते हैं जो नरम, पचाने में तेज और उच्च प्रोटीन वाले हों। कम खाना पचाने में सहायक होता है। ऐसे में हिस्से को नियंत्रित करने की कला सबसे अहम है। यह सुनिश्चित करें कि छोटे हिस्से बार-बार (दिन में 6 से 8 बार) खाएं। यह आपके शरीर को पोषण देगा और उसे पचाने के लिए आपके पेट पर बोझ भी नहीं पड़ेगा। अगर पेट खाने में से पोशक तत्वों को लेने में अक्षम हो, तो आपको पोशण के लिए पूरक (विटामिन बी12, आयरन, फोलेट या कैल्शियम) भी लेना पड़ सकता है।
कुछ मरीजों को उबकाई, डायरिया, पसीना ंऔर खाने के बाद उलटी जैसा महसूस होता है। इसे ‘डंपिंग सिंड्रोमÓ कहते हैं और यह तब होता है, जब पेट का कुछ हिस्सा या पूरा हिस्सा निकाल लिया जाता है, जिससे निगला गया पूरा खाना सीधे अंतडिय़ों में जाता है। ये लक्षण अक्सर समय के साथ ठीक हो जाते हैं।
पेट के कैंसर के लिए पर्याप्त देखभाल और उपचार के बाद ध्यान देने की जरूरत होती है, इसलिए यह सुनिष्चित करें कि आप नियमित परीक्षण के लिए अपने डॉक्टरों से मिलते रहें। डॉक्टर शारीरिक परीक्षण करता है और लक्षणों की समीक्षा करता है। पहले कुछ सालों के लिए प्रत्येक 3 से 6 महीनों में परीक्षण कराए जाते हैं और इसके बाद सालाना परीक्षण कराने की सलाह दी जाती है। पेट के कैंसर का पता लगने के बाद जीवन से तालमेल बिठाना तनावपूर्ण होता है, लेकिन सही उपचार, जीवनशैली में बदलाव, डॉक्टरों व शुभचिंतकों के साथ मरीज आराम से जीवन जी सकता है।