बीते साल दिसंबर में चीन के वुहान शहर में कोरोना वायरस का यह नया सदस्य कोविड-19 सामने आया था। लेकिन इन 6 महीनों में अलग-अलग देशों में कोरोना कोविड-19 के पहले 11 अब २४ अलग-अलग स्परूप यानी स्ट्रेन (CORONA MUTATION) सामने आ चुके हैं। इसके सबसे खतरनाक स्ट्रेन ने अमरीका, इटली, स्पेन, ब्राजील और फ्रांस मेंजबरदस्त तबाही मचाई है। कोविड-19 STRAIN जिसे वैज्ञानिक सार्स-कोव-02 भी कहते हैं के चलते पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल छाए हुए हैं।
इस महामारी संकट से निजात पाने के लिए इस समय पूरी दुनिया के वैज्ञानिक और फार्मा कंपनियां इसकी वैक्सीन बनाने के काम में जुटे हुए हैं। को लेकर दुनियाभर के वैज्ञानिक लगे हुए हैं। लेकिन बहुत तेजी से वायरस के आरएनए में म्यूटेशन होने के कारण इसकी वैक्सीन बनाने में परेशानी आ रही है। हालांकि पिछले कुछ शोधों में वैज्ञानिकों का कहना है कि अब इस वायरस के म्यूटेशन की दर धीमी हो गई है। ऐसे में वैज्ञानिकों को विश्वास है कि जल्द ही कोई न कोई टीम कारगर वैक्सीन तैयार कर ही लेगी।
दुनिया भर के देशों में कोरोना वायरस के आंकड़ों का डैशबोर्उ जारी करने वाली अमरीकन यूनिवर्सिटी जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की एक टीम का कहना है कि छह महीने में २४ बार अपना स्वरूप बदल चुके इस बहरुपिये वायरस की म्यूटेशन दर अब कुन्द पडऩे लगी है। म्यूटेशन रेट में धीमी गति के कारण महीनों से वायरस की वैक्सीन बना रही वैज्ञानिकों की टीमों को अब कभी भी सफलता मिल सकती है। पहले से कमजोर हुए इस वायरस की काट तैयार करने में अब ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।
जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने 20 हजार से अधिक कोरोना सैंपलों का अध्ययन किया है। अध्ययन में सामने आया कि कोरोना वायरस का वह स्पाइक प्रोटीन जिसकी मदद से यह हमारे फेफड़ों के ऊत्तकों से चिपक कर उनपर नियंत्रण कर लेता था उनमेंअब परिवर्तन नहीं हो रहा है।
कोरोना वायरस अब स्थिर है और यह समय वैक्सीन तैयार करने के लिए सबसे उचित है। क्योंकि यही वह समय है जब कोरोना वायरस के आरएनए का गहन अध्ययन कर उसे समझा जा सकता है। इससे कोरोना के खिलाफ एक कारगर वैक्सीन बनाने में मदद मिलेगी। वहीं बात करें भारत में वैक्सीन की तैयारियों की तो देश में कोरोना वैक्सीन बनाने पर कई भारतीयसंस्थान काम कर रहे हैं। फार्मा कंपनियों के अलावा निजी लैब, आयुर्वेद संस्थान और होम्योपैथी सहित भारतमेंपहले से मौजूद टीकों और दवाओं में इसका इलाज ढूंढा जा रहा है। अभी तक चार वैक्सीनों के परीक्षण परिणाम भी सकारात्मक रहे हैं।