अध्ययन में 30-45 वर्ष के पुरुष शामिल
डेनमार्क के नॉर्ड यूनिवर्सिटेट के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस अध्ययन में 30 से 45 वर्ष के बीच के 526,056 पुरुषों को शामिल किया गया, जिनके दो से कम बच्चे थे। अध्ययन अवधि 2000 से 2017 के बीच थी। इसमें यह देखा गया कि पांच वर्षों तक औसत से अधिक पीएम2.5 के संपर्क में रहने वाले पुरुषों में बांझपन (Infertility in Men) का खतरा 24 प्रतिशत तक बढ़ गया।बांझपन और वायु प्रदूषण का संबंध Infertility in men and air pollution
स्पर्म की गुणवत्ता पर भी असर:
इससे पहले हुए शोधों में पाया गया है कि वायु प्रदूषण (Air Pollution) के सूक्ष्म कण स्पर्म की गुणवत्ता और फर्टिलिटी ट्रीटमेंट की सफलता दर पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। हालांकि, गर्भधारण (Pregnancy) की संभावना (फेकुंडेबिलिटी) पर इसके प्रभाव को लेकर मिले-जुले नतीजे सामने आए हैं। इस नए अध्ययन में विशेष रूप से पुरुष बांझपन (Infertility in Men) पर फोकस किया गया है, जो पहले के अध्ययनों में नजरअंदाज हुआ था।वायु प्रदूषण से सावधान Beware of air pollution
शहरी परिवहन शोर का भी ध्यान नहीं:
शोधकर्ताओं ने यह भी माना कि इस अध्ययन में जीवनशैली, कार्यक्षेत्र और अवकाश के दौरान वायु प्रदूषण (Air Pollution) के संपर्क में आने की स्थिति को पूरी तरह से शामिल नहीं किया जा सका। इसके अलावा, ऐसे जोड़े जो गर्भधारण (Pregnancy) की कोशिश नहीं कर रहे थे, वे भी इस अध्ययन का हिस्सा नहीं थे।समाधान: बेहतर हवा, स्वस्थ भविष्य
सरकारी प्रयासों की जरूरत:यह अध्ययन वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक उपायों की मांग करता है ताकि वैश्विक जन्म दर को बेहतर किया जा सके। बेहतर वायु गुणवत्ता सुनिश्चित करने से न केवल प्रजनन स्वास्थ्य के परिणाम सुधर सकते हैं, बल्कि इससे एक स्वस्थ और स्थायी भविष्य की दिशा में भी कदम बढ़ाए जा सकते हैं। यह हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है कि उसे स्वच्छ हवा मिले, और इसके लिए सरकारों को सक्रिय रूप से काम करना चाहिए।
पर्यावरण सुधार के प्रयास:
वायु प्रदूषण (Air Pollution) से जुड़े इस प्रकार के अध्ययन न केवल बांझपन (Infertility) की समस्या को समझने में मदद करते हैं, बल्कि यह भी स्पष्ट करते हैं कि एक स्वस्थ पर्यावरण का मानव स्वास्थ्य पर कितना महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
वायु प्रदूषण (Air Pollution) से जुड़े इस प्रकार के अध्ययन न केवल बांझपन (Infertility) की समस्या को समझने में मदद करते हैं, बल्कि यह भी स्पष्ट करते हैं कि एक स्वस्थ पर्यावरण का मानव स्वास्थ्य पर कितना महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।