भावनात्मक रूप से होने वाली थकान को पेरेंटल बर्नआउट कहा जाता है
बच्चों की परवरिश के दौरान शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से होने वाली थकान को पेरेंटल बर्नआउट कहा जाता है, जो पेरेंट्स और बच्चे के बीच की बॉन्डिंग को खत्म कर सकता है। इसके चलते पेरेंट्स बच्चों से दूरी बनाने लगते हैं। प्रताप नगर निवासी एक अभिभावक का बेटा 11वीं कक्षा में था, तब उसने बताया कि वह सीए बनना चाहता है। पढ़ाई में एवरेज होने के कारण पिता के मना करने के बावजूद वह नहीं माना। पिता ने बच्चे को एक साल का समय दिया। जब वह परीक्षा में पास नहीं हो पाया, तो उसे लगातार पिता के गुस्से का समना करना पड़ा। ऐसे में उसके पिता बर्नआउट का शिकार होने लगे।
मानसरोवर निवासी एक पेरेंट्स की सात वर्षीय बच्ची ने लगातार तीन महीने तक स्कूल न जाने जिद की। स्कूल की समर वेकेशन के दौरान भी बच्ची यही बोलती रही, कि वह स्कूल खुलने के बाद भी नहीं जाएगी। मां तनाव में आ गई और घर में झगड़े होने लगे। पति-पत्नी के बीच रोज बहस होने लगी। इस स्थिति में बच्ची की मां पेरेंटल बर्नआउट का शिकार हो गई। अब वे काउंसलर से सलाह ले रहे हैं।
ऐसे करें बचाव
खुद के लिए समय निकालें। जिम्मेदारियों को बांटें। बेमतलब के टारगेट सेट न करें, जिससे निराशा हो। अति अनुशासित न बनें, जिससे बर्डन फील हो। ज्यादा व्यवस्थित होने से बचें। नजरिया बदलने की कोशिश करें। बच्चों की खामियों की जगह उनकी स्ट्रेंथ पर ध्यान दें और इमोशनल बॉन्डिंग बनाएं। चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट वंदना चौधरी ने बताया कि पेरेंटल बर्नआउट ज्यादातर सिंगल चाइल्ड के केस और न्यूक्लियर फैमिलीज में देखने को मिलता है। पेरेंट्स को लगता है कि हमारा एक ही बच्चा है तो वह परफेक्ट व आदर्श होना चाहिए। पेरेंट्स में भी 11 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में फीमेल बर्नआउट के केसेज ज्यादा आते हैं। मदर को चाहिए कि बच्चा एक रूटीन फॉलो करें, स्क्रीन टाइम नहीं रहे और अनुशासित हो। परिवार में माता-पिता के झगड़ों का भी बड़ा कारण पेरेंटल बर्नआउट है। समर वेकेशन के कारण इसके कैसेज बढ़ गए हैं।