ओवेरियन कैंसर को “साइलेंट किलर” कहा जाता है क्योंकि इसके शुरुआती लक्षण नहीं होते और आमतौर पर इसका पता तब चलता है जब यह काफी बढ़ चुका होता है और इलाज करना मुश्किल हो जाता है।
अमेरिका के जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर जॉन मैकडोनाल्ड के अनुसार, यह नया टेस्ट मौजूदा टेस्ट से बेहतर है और खासकर शुरुआती स्टेज के कैंसर का पता लगाने में काफी मददगार है। यह टेस्ट मरीज के मेटाबॉलिक प्रोफाइल के आधार पर कैंसर होने की संभावना को ज्यादा सटीकता से बताता है। मैकडोनाल्ड कहते हैं, “यह नया तरीका पारंपरिक हां/ना के बजाय संभावना के आधार पर ज्यादा जानकारी देता है और सटीक भी होता है। यह ओवेरियन कैंसर और शायद दूसरे कैंसरों के जल्दी पता लगाने में एक बड़ी उम्मीद है।”
उन्होंने बताया कि आखिरी स्टेज के ओवेरियन कैंसर के मरीजों का इलाज के बाद भी 5 साल का सर्वाइवल रेट सिर्फ 31% होता है, जबकि अगर कैंसर का जल्दी पता चल जाए तो यह दर 90% से ज्यादा हो सकती है।
इसलिए इस बीमारी का जल्दी पता लगाना बहुत जरूरी है। मैकडोनाल्ड बताते हैं कि पिछले 30 सालों से वैज्ञानिक इस तरह का टेस्ट बनाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन सफल नहीं हो पाए थे।
कैंसर मॉलिक्यूलर लेवल पर शुरू होता है, इसलिए एक ही तरह के कैंसर में भी अलग-अलग बदलाव हो सकते हैं। इस वजह से एक यूनिवर्सल बायोमार्कर ढूंढना मुश्किल है। इसलिए वैज्ञानिकों ने मशीन लर्निंग का इस्तेमाल करके एक नया तरीका अपनाया। उन्होंने 564 महिलाओं (जिनमें 431 कैंसर मरीज थीं) के मेटाबॉलिक प्रोफाइल और मशीन लर्निंग को मिलाकर एक टेस्ट बनाया जो 93% सटीक है।
अब वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या यह टेस्ट बिना लक्षण वाले महिलाओं में भी शुरुआती स्टेज के कैंसर का पता लगा सकता है।