दिल्ली के कलवती सरन चिल्ड्रन हॉस्पिटल के शोधकर्ताओं ने 500 बच्चों (250 सरकारी और 250 निजी स्कूलों से) पर अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि सरकारी और निजी स्कूल के बच्चों में मोबाइल की लत (Mobile phone addiction) के शारीरिक खतरे अलग-अलग हैं, लेकिन मानसिक खतरे दोनों में समान हैं।
मोबाइल की सस्ती उपलब्धता और कई ऐप्स के अलावा, कोरोना महामारी (Covid-19) के दौरान बच्चों का मोबाइल इस्तेमाल काफी बढ़ गया है। डॉ. पूनम सिदाना, दिल्ली के सीके बिड़ला हॉस्पिटल की निदेशक के अनुसार, “बच्चे अब आपस में कम बात करते हैं, जिससे सामाजिक संबंध कमजोर होते हैं। निजी स्कूलों में यह ज्यादा देखा गया है, शायद ऑनलाइन पढ़ाई और वैश्विक घटनाओं के ज्यादा संपर्क की वजह से।”
मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से गर्दन और आंखों में तकलीफ, पीठ दर्द, नींद न आना और कम चलना-फिरना जैसी शारीरिक समस्याएं भी हो सकती हैं। इससे मोटापा, मधुमेह, हाई ब्लड प्रेशर और कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है।
मानसिक समस्याओं में चिंता, डिप्रेशन, कम आत्मविश्वास और सामाजिक अकेलापन शामिल हैं। मोबाइल की लत से पढ़ाई पर भी बुरा असर पड़ता है क्योंकि पढ़ाई का समय, ध्यान और उत्पादकता कम हो जाती है।
एक्सपर्ट्स माता-पिता को मोबाइल के नुकसान के बारे में जागरूक करने और बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखने की सलाह देते हैं। बच्चों को सुरक्षित तरीके से टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल और सामाजिक संबंध बनाना सिखाना भी जरूरी है।
डॉ. राहुल नागपाल, फोर्टिस हॉस्पिटल वसंत कुंज के निदेशक के अनुसार, “माता-पिता का सही मार्गदर्शन बच्चों के व्यवहार को बहुत प्रभावित करता है। अगर माता-पिता ध्यान नहीं देते तो मोबाइल का गलत इस्तेमाल और लत का खतरा बढ़ जाता है।”
अब समय है कि माता-पिता और स्कूल मिलकर बच्चों को स्क्रीन टाइम के नुकसान से बचाएं और उन्हें जिम्मेदार डिजिटल नागरिक बनाएं।