उत्तर प्रदेश वेलफेयर फॉर पीपल लिविंग विद एचआईवी/एड्स सोसाइटी (UPNPplus) के राज्य समन्वयक विमलेश कुमार ने बताया, “यह चरणबद्ध तरीके से होता है। हम बायोडेटा सर्कुलेट करते हैं जिसे इच्छुक पुरुष या महिलाएं उठा लेते हैं। परिवार मिलता है और फिर उम्र, कद, आय, शिक्षा आदि पर चर्चा होती है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो शादी तय हो जाती है।
बायोडेटा को फॉरवर्ड करने से पहले, UPNPplus द्वारा कैंडिडेट के वायरल लोड और CD4 काउंट टेस्ट (एचआईवी से संक्रमित होने पर प्रतिरक्षा प्रणाली के स्वास्थ्य की जांच के लिए इस्तेमाल किया जाता है) को मंगवाया जाता है ताकि होने वाली दुल्हन/दूल्हे के स्वास्थ्य का पता लगाया जा सके।
कुमार ने कहा, इस साल अप्रैल और अक्टूबर के बीच उत्तर प्रदेश में पीएलएचआईवी के बीच 24 शादियां हुईं।” एक बार शादी की तारीख तय हो जाने के बाद, होने वाले जोड़े को परिवार नियोजन और पारिवारिक जीवन में अच्छे व्यवहार के लिए परामर्श दिया जाता है।
कुमार ने कहा, “शादी करने वाले दोनों व्यक्तियों के बीच कुछ भी छिपा नहीं रहता है। यह पारदर्शिता शादी के बाद जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करती है।” वर्तमान में, राज्य में एआरटी पर 1,12,204 पीएलएचआईवी हैं, जबकि एचआईवी से पीड़ित लोगों की अनुमानित संख्या 1.94 लाख है। इस साल, अप्रैल से अब तक 5,873 पुरुष, 3,142 महिलाएं, 47 ट्रांसजेंडर, 264 पुरुष बच्चे और 187 महिला बच्चों को एचआईवी देखभाल के लिए पंजीकृत किया गया है।
डॉक्टरों का कहना है कि पीएलएचआईवी के बीच शादी के दोहरे फायदे हैं। पहला, संक्रमण फैलने की संभावना कम हो जाती है, दूसरा, पीएलएचआईवी भी सामान्य पारिवारिक जीवन व्यतीत कर सकते हैं। डॉक्टरों के मुताबिक, मार्गदर्शन और चिकित्सकीय सहायता से एचआईवी पॉजिटिव माता-पिता से पैदा हुआ नवजात शिशु एचआईवी नेगेटिव रह सकता है।
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी सेंटर की सुमन शुक्ला ने कहा, “जन्म के समय टेस्ट किए जाते हैं और दवा दी जाती है, ताकि नवजात शिशु को एचआईवी नेगेटिव रखा जा सके।” IANS