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टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में नवाचार कर बना रहे पहचान

जयपुर. शिक्षा हमारा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसका उपयोग हम दुनिया को बदलने के लिए कर सकते हैं। नेल्सन मंडेला के इन शब्दों को ध्यान में रखते हुए ही ग्रीन कैमेस्ट्री पर काम कर रही हैं प्रो. अंशु डांडिया।

Sep 15, 2023 / 06:53 pm

Manoj Kumar

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वैज्ञानिक दिमाग कभी सेवानिवृत्त नहीं होता – प्रो. अंशु डांडिया
ग्रीन केमेस्ट्री और नैनो टेक्नोलॉजी में रिसर्च से बनाई पहचान
राखी हजेला
जयपुर. शिक्षा हमारा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसका उपयोग हम दुनिया को बदलने के लिए कर सकते हैं। नेल्सन मंडेला के इन शब्दों को ध्यान में रखते हुए ही ग्रीन कैमेस्ट्री पर काम कर रही हैं प्रो. अंशु डांडिया। प्रो. डांडिया को हाल ही में सोसायटी फॉर मेटेरियल्स मुंबई ने महिला वैज्ञानिक पुरस्कार-2023 पुरस्कार के लिए चुना है जो अक्टूबर 2023 में प्रदान किया जाएगा।

वह राजस्थान यूनिवर्सिटी में बोर्ड ऑफ स्टडीज की कन्वीनर रही हैं। सोलर पैनल के लिए नैनो कोटिंग बनाई उन्होंने 90 के दशक में उन्होंने ग्रीन कैमिस्ट्री पर अपना रिसर्च वर्क शुरू किया। वह राजस्थान विवि में ग्रीन कैमेस्ट्री पर काम करने वाली पहली महिला थीं। उनके जीवन में एक समय ऐसा भी आया कि वह स्वास्थ्य कारणों से व्हील चेयर पर आ गई लेकिन उनका काम नहीं थमा। सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने एक कंपनी की शुरुआत की।

हाल ही में उनकी टीम ने लगभग 0.4 माइक्रोन की मोटाई के साथ सॉलिड स्टेट नैनो कोटिंग का निर्माण किया है जिसका उपयोग सोलर पैनल में होता है। इस नैनो कोटिंग के उपयोग से बिजली और ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि होती है। वह कहती हैं कि उम्र सिर्फ एक संख्या है जिसने उन्हें सेवानिवृत्त कर दिया लेकिन उनका वैज्ञानिक दिमाग उन्हें वास्तविक रूप से कभी रिटायर नहीं होने देगा।

उन्हें केमिकल रिसर्च सोसायटी ऑफ इंडिया की ओर से उन्हें ब्रॉन्ज मेडल, मेटेरियल्स रिसर्च सोसायटी ऑफ इंडिया की ओर से प्रतिष्ठित एमआरएसआई मेडल, प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय महिला वैज्ञानिक पुरस्कार साइंस लीजेंड अवॉर्ड के साथ ही उन्हें नारी शक्ति अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है।

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शिक्षक ने एआई तकनीक से बनाया किसानों के लिए कार्बन उत्सर्जन कम करने वाला यंत्र
निशांत तिवारी
बिलासपुर. शिक्षक पानू हलदार ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की सहायता से एक ऐसे यंत्र का निर्माण किया है, जो कृषि जगत में क्रांति ला सकता है। उन्होंने स्थानीय कृषकों की समस्याओं को ध्यान में रखकर स्टेम आधारित मोबिलाइज्ड कृषि प्रबंधन तकनीक तैयार किए हैं जिससे कार्बन उत्सर्जन को कम करने के साथ जल व मृदा संरक्षण में भी मदद मिलेगी।
यह यंत्र खेतों में एकत्र होने वाले पानी को प्राकृतिक विधि से शुद्ध कर इसे पुन: उपयोग करने योग्य बनाता है। साथ ही फसलों को पशुधन से होने वाले नुकसान को कम करने में भी इस यंत्र से सहायता मिलेगी। खास बात यह है कि, इसे बिना नेटवर्क के दूरस्थ क्षेत्रों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। स्थानीय स्तर पर एक एकड में यंत्र स्थापित करने की लागत 15 हजार रुपए हैं और सब्सिडी मिलने पर 10 हजार से कम लागत आएगी।
बच्चों ने सीखे 80 से अधिक मॉडल नवाचारी शिक्षक पानू हलदार ने एआई की मदद से बच्चों को 80 से अधिक मॉडल बनाने का प्रशिक्षण दिया है। इनमें सबसे अधिक आयोटी बेस मॉडल हैं। अर्थात मोबाइल टेक्नोलॉजी से रोबोट का चलना। इसके अतिरिक्त कम्युनिटी चैलेंज, सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए व जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए मॉडल बनाए गए हैं।
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मैंने समाज से बहुत कुछ सीखा, अब लौटाने का समय : प्रियंका
ताबीर हुसैन
रायपुर अब रिसर्च में भी महिलाएं अच्छा काम कर रही हैं। ऐसी ही रिसर्चर हैं प्रियंका पांडे। उन्होंने दावा किया है कि बबूल की पत्तियों से ऐसी दवा तैयार की है जिससे घाव तो भरेंगे ही, अलग से एंटीबॉयोटिक की आवश्यकता भी नहीं होगी। प्रियंका का कहना है कि यह दवा नॉर्मल और डायबिटिक दोनों के लिए कारगर हो सकती है। इस खोज के लिए मैंने करीब ढाई साल दिए। इस दवा का पेटेंट भी फाइल हो चुका है।” मच्छर रहित प्रदेश की अवधारणा वह कहती हैं कि वह इन दिनों एंटी मॉस्किटो प्रोजेक्ट पर रिसर्च कर रही हैं।

एक ऐसा बैक्टीरिया जिसका भोजन ही मच्छर और उसके अंडे हैं। इस रिसर्च से राज्य को मॉस्किटो फ्री स्टेट बनाया जा सकता है। इसके अलावा उन्होंने एक स्मार्ट फ्लश डिजाइन को भी पेटेंट करवाया है। हर्बल पर अधिक रिसर्च नहीं प्रियंका कहती हैं कि छत्तीसगढ़ को हर्बल राज्य का दर्जा मिले बरसों हो गए लेकिन हर्बल पर अधिक रिसर्च नहीं कि जा रही हैं। इसलिए उन्होंने तय किया कि यहां की मिट्टी में बहुतायत में उपजे बबूल से दवा तैयार करूं। वह कहती हैं कि जब बात रिसर्च की आई तो मैंने चिकित्सा के क्षेत्र को चुना। क्योंकि सोसायटी से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला है। अब समय लौटाने का है।
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टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में नवाचार कर बनाई अपनी पहचान

– प्लांट बायोटेक्नोलॉजी से नवीन अनुसंधान कर रही डॉ. श्वेता झा

जयकुमार भाटी
जोधपुर। बदलते परिवेश में महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर काम कर रही है। जिससे महिलाओं के लिए साइंस टेक्नोलॉजी का फील्ड भी अछूता नहीं रहा है। वे इस क्षेत्र में भी बेहतरीन काम कर रही हैं। ऐसी ही एक महिला है जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय के वनस्पति शास्त्र विभाग में सहायक आचार्य के पद पर कार्यरत डॉ. श्वेता झा। डॉ. श्वेता का शोध के क्षेत्र में राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक जाना पहचाना नाम है। जिन्होंने फसलों में प्लांट बायोटेक्नोलॉजी के द्वारा सुधार एवं उनमें अजैविक एवं जैविक कारको के प्रति स्ट्रेस टॉलरेंस विकसित करने के लिए नवीन अनुसंधान कार्य किए है।

इनमें किया शोध
डॉ. श्वेता के मुख्य शोध क्षेत्र प्लांट जेनेटिक इंजीनियरिंग, स्ट्रेस फिजियोलॉजी एवं फंक्शनल जीनोमिक्स है। जिसके तहत उन्होंने हाल ही में थार मरुस्थल की प्रमुख फसल बाजरे में प्रोटिओमिक्स और ट्रांसक्रिपटॉमिक्स प्रक्रिया से नवीन लवण प्रतिरोधी जीन्स की खोज की है। इसका उपयोग भविष्य में अन्य फसलों में लवण सहिष्णुता का जेनेटिक इंजीनियरिंग एवं जीनोम एडिटिंग तकनीक से विकास करने में किया जाएगा।

उन्होंने बताया कि बाजरा राजस्थान की मुख्य खाद्य फसल है एवं पोषक तत्वों से भरपूर होने के साथ-साथ थार मरुस्थल की विषम शुष्क वातावरण के लिए अनुकूलित है। इन्हीं गुणों के कारण इस शोध कार्य में बाजरे को स्ट्रेस प्रोटीन की खोज के लिए चयनित किया गया। इस शोध परियोजना के लिए केंद्र सरकार के साइंस एंड टेक्नोलॉजी विभाग की ओर से डॉ झा को पूर्व में अनुदान दिया गया।
गोल्ड मेडलिस्ट भी रही
डॉ श्वेता आरंभ से ही मेधावी छात्रा होने से पूर्व में जेएनवीयू से एमएससी (बॉटनी) में गोल्ड मेडलिस्ट भी रही है। उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी एवं राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान केन्द्र लखनऊ (सीएसआईआर) से बायोटेक्नोलॉजी विषय में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लांट जीनोम रिसर्च नई दिल्लीमें पोस्ट डॉक्टरल रिसर्च भी किया है। डॉ झा के चावल में स्ट्रेस से जुड़े प्रोटीन पर काम, जैविक और अजैविक स्ट्रेस में उनकी भूमिका, जैव रासायनिक लक्षण वर्णन और उनकी क्रिया के तंत्र की व्याख्या, प्रोटीन व प्रोटीन इंटरैक्शन अध्ययन जैसे बहुत सारे अनुसंधान अंतरराष्ट्रीय स्तर के जर्नल्स में प्रकाशित हो चुके है।

वे भविष्य में क्रिस्पर-सीएएस एवं एआई आधारित तकनीक को उपयोग में लाते हुए क्लाइमेट स्मार्ट एवं स्ट्रेस प्रतिरोधी फसलों को विकसित करना चाहती है। हाल ही में उन्हें फसलों में जीनोम एडिटिंग के अनुप्रयोग के लिए इनसा विजिटिंग साइंटिस्ट अवॉर्ड भी मिला है। उनका मुख्य उद्देश्य यहां की विषम परिस्थितियों में रहते हुए अच्छी गुणवत्ता का शोध करने के साथ छात्र छात्राओं को पादप जैव प्रौद्योगिकी के आधुनिक क्षेत्रों के बारे में जानकारी देना है।

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