उम्र बढ़ने पर बुजुर्गों में एकसाथ कई बीमारियां होती हैं। 60 वर्ष से अधिक उम्र के 4 फीसदी बुजुर्गों को डिमेंशिया है । डिमेंशिया के मरीज थोड़ी ही देर पहले की बातों को भूल जाते हैं । 80 से अधिक उम्र होने पर डिमेंशिया के मरीजों की संख्या 30% तक हो जाएगी। बुजुर्ग को डिप्रेशन, डिलिरियम आदि कई अन्य समस्याएं होने लगती हैं। नींद न आने, चिड़चिड़ा होना और छोटी बात पर गुस्सा आम बात है।
एक सर्वे के अनुसार देश में 21 फीसदी से अधिक बुजुर्ग डिप्रेशन में हैं। इससे भी मरीजों में हार्ट और स्ट्रोक का खतरा चार गुना बढ़ जाता है । एक्सपर्ट की मानें तो हॉस्पिटल्स की जगह घर में केयर अच्छी होती है । इसलिए बुजुर्गों की सेवा के लिए होम केयर सुविधा बढ़नी चाहिए ।
रिटायर होने के बाद लोगों का सामाजिक जीवन से दूर होना है। किसी मित्र या संबंधी की मृत्यु की खबर भी परेशान कर देती हैं। साथ ही बीपी, शुगर, स्ट्रोक आदि गंभीर रोग भी कारण होते हैं। बुजुर्गों में मानसिक रोगों का मुख्य कारण उम्र अधिक होना है। 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में रासायनिक परिवर्तन होते हैं। इस कारण डिप्रेशन, एंजायटी और तनाव आदि होने लगता है।
बुजुर्गों का इलाज जेरियाट्रिक मेंटल हैल्थ एक्सपर्ट ही करते हैं। इसमें मरीजों के इलाज के साथ परिवारीजनों को भी टे्रनिंग देते हैं। इसमें मरीज को दवाइयां देने के साथ कई प्रकार की थैरेपी देते हैं। इनमें कॉग्नेटिव और बिहैवियर थैरेपी अधिक कारगर होती है। गंभीर मरीजों का इलाज भर्ती कर किया जाता है, अलग वार्ड होता है।
40-50 वर्ष की उम्र से ही अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें । नियमित जांचें कराएं, बीपी, शुगर आदि है तो नियंत्रित रखें
रिटायर होने के बाद भी एक्टिव रहें, सोशल एक्टिविटी करें । अपने लिए भी रोजाना करीब एक घंटे का समय निकालें
दिमाग को एक्टिव रखने के लिए चेस या पजल्स में मन लगाएं। फ्रेंड सर्किल बनाएं, परिवार के अन्य सदस्यों से बातचीत करें । अगर कोई समस्या महसूस हो तो डॉक्टर से संपर्क करें । कई सर्वे में कहा गया है कि बुजुर्ग डिजिटल रूप से एक्टिव रहें । डिजिटल नॉलेज होने से दूर बैठें लोगों से संपर्क कर सकते हैं ।