हर साल 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया जाता है ताकि लोगों को ऑटिज्म के बारे में जागरूक किया जा सके और इस बीमारी को लेकर फैली गलतफहमियों को दूर किया जा सके। साथ ही इस स्थिति से जूझ रहे लोगों को समर्थन दिया जा सके।
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) जिसे आमतौर पर ऑटिज्म कहा जाता है, बच्चों में दिमाग के विकास से जुड़ी एक समस्या है। आर्टेमिस अस्पताल, गुरुग्राम में न्यूरोइंटरवेंशन के प्रमुख और स्ट्रोक यूनिट के सह-प्रमुख डॉ विपुल गुप्ता ने आईएएनएस को बताया, “एएसडी से पीड़ित लोगों के विकास और उनके समग्र स्वास्थ्य पर काफी हद तक असर डालने के लिए शुरुआती उपचार महत्वपूर्ण हैं। जल्दी पता लगाने और निदान करने से परिवारों को जरूरी संसाधन और मदद मिल सकती है, जिससे उन्हें अपने बच्चे की विशेष जरूरतों को पहचानने और उन्हें पूरा करने में मदद मिलेगी।”
अभी तक ऑटिज्म के किसी एक कारण की पहचान नहीं हो पाई है, लेकिन शोध से पता चलता है कि आनुवंशिक, वातावरण और विकास से जुड़े कई कारण मिलकर इसे जन्म दे सकते हैं।
रूबी हॉल क्लिनिक, पुणे की सलाहकार गायनेकोलॉजिस्ट डॉ आभा भालेराव ने आईएएनएस को बताया कि माता-पिता की ज्यादा उम्र, गर्भावस्था के दौरान कुछ दवाओं का सेवन जैसे वालप्रोइक एसिड, वातावरण में मौजूद हानिकारक पदार्थ जैसे भारी धातु और कीटनाशक, पोषण की कमी जैसे फोलिक एसिड की कमी, मां को मधुमेह और मोटापा जैसी स्वास्थ्य समस्याएं, समय से पहले जन्म और जन्म के दौरान परेशानियां ऑटिज्म के विकास के लिए मुख्य कारण हो सकते हैं।
इसके अलावा गर्भावस्था में मधुमेह या हाई ब्लड प्रेशर जैसी माँ की स्वास्थ्य समस्याएं भी बच्चों में ऑटिज्म के खतरे को बढ़ा सकती हैं। प्रसव के दौरान परेशानियां जैसे समय से पहले जन्म लेना या जन्म के समय चोट लगना, ऑक्सीजन की कमी या भ्रूण को तकलीफ होना भी इस खतरे को बढ़ा सकता है।
डॉ आभा का कहना है कि “यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इनमें से एक या एक से अधिक जोखिम कारकों का होना यह गारंटी नहीं देता है कि बच्चे को ऑटिज्म होगा। उसी तरह, कई बच्चे जिनमें ऑटिज्म विकसित होता है, वे शायद इन कारकों के संपर्क में नहीं आए हों। ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर संभवतः आनुवंशिक प्रवृत्ति और वातावरण के प्रभावों के जटिल मेलजोल का नतीजा है।”
एएसडी से पीड़ित लोगों को सामाजिक मेलजोल में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है और वे मौखिक और गैर-मौखिक दोनों तरह के संचार के संकेतों को समझने और उनका उपयोग करने में परेशानी कर सकते हैं। इसके इलाज में मुख्य रूप से स्पीच थेरेपी, सामाजिक कौशल प्रशिक्षण और एप्लाइड बिहेवियर एनालिसिस (एबीए) शामिल हैं।
डॉ. विपुल ने कहा, “शुरुआती चरणों में मस्तिष्क की न्यूरोप्लास्टिकिटी का उपयोग करके, प्रारंभिक हस्तक्षेप कौशल विकसित करने में मदद करता है, कठिनाइयों को कम करता है और दीर्घकालिक सफलता सुनिश्चित करता है।