युवाओं में क्यों बढ़ रहा है Colorectal cancer, इस आकार के शरीर में होता अधिक खतरा
Colorectal cancer : भारत में हाल के वर्षों में कोलोरेक्टल कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, खासकर 31 से 40 वर्ष के युवाओं में। बदलती जीवनशैली, आहार में प्रोसेस्ड फूड, रेड मीट और फैटी फूड का बढ़ता सेवन, और शारीरिक सक्रियता की कमी इसके मुख्य कारणों में शामिल हैं। यह कैंसर जब शुरुआती चरणों में पहचान लिया जाता है, तो इसका इलाज संभव है। इसलिए जीवनशैली में बदलाव और नियमित जांच अत्यंत महत्वपूर्ण हो गई है।
Colorectal cancer : हाल के वर्षों में भारत में कोलोरेक्टल कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, खासकर 31 से 40 वर्ष के युवाओं में। पहले यह सातवें स्थान पर सबसे आम कैंसर था, लेकिन अब यह चौथे स्थान पर आ गया है। खराब आहार, शारीरिक गतिविधि की कमी, तंबाकू और शराब का अधिक सेवन इस बढ़ते जोखिम के प्रमुख कारण हैं। यदि समय पर जांच और उपचार किया जाए, तो इस कैंसर का इलाज संभव है, और जीवनशैली में कुछ सुधार से इसके जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
कोलोरेक्टल कैंसर बढ़ने के मुख्य कारण Reasons for the increase in colorectal cancer
आहार में बदलाव: प्रोसेस्ड फूड, रेड मीट और फैटी फूड का अधिक सेवन। फाइबर और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी: फलों और सब्जियों का कम सेवन।
गतिहीन जीवनशैली: शारीरिक गतिविधि की कमी। तंबाकू और शराब का अधिक उपयोग।
जोखिम बढ़ाने वाले अन्य कारक Factors that increase colorectal cancer risk
मोटापा और विटामिन डी की कमी।
कोलन में पॉलिप्स या सूजन संबंधी आंत्र रोग (IBD)।
पारिवारिक इतिहास: जिनके परिवार में किसी को यह कैंसर हो चुका है, उन्हें अधिक सतर्क रहना चाहिए।
शुरुआती लक्षण जो नजरअंदाज नहीं करने चाहिए Colorectal cancer early symptoms
मल त्याग की आदतों में बदलाव: बार-बार शौच जाना या अधूरा महसूस होना।
खून की कमी (एनीमिया): खासतौर पर 40 वर्ष से अधिक उम्र में।
पाइल्स के लक्षण: जो लंबे समय तक बने रहें।
Colorectal cancer प्रारंभिक जांच क्यों है जरूरी?
कोलोरेक्टल कैंसर के शुरुआती चरणों (स्टेज 1 और 2) में पता चलने पर इसे पूरी तरह ठीक किया जा सकता है।
स्टेज 3 में भी उचित सर्जरी से इलाज संभव है।
सेब के आकार वाली शरीर संरचना और स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव : Apple Shape and Colorectal Cancer Risk
सेब के आकार वाली शरीर संरचना का मतलब क्या है?
सेब के आकार का शरीर वह है जिसमें वसा मुख्य रूप से पेट और कमर के आसपास जमा होती है। इस प्रकार की संरचना में शरीर के मध्य भाग पर अधिक चौड़ाई होती है। इसके विपरीत, नाशपाती के आकार का शरीर वह है जिसमें वसा कूल्हों, जांघों और नितंबों में अधिक होती है।
सेब के आकार और स्वास्थ्य संबंधी जोखिम
सेब के आकार की शरीर संरचना खतरनाक मानी जाती है क्योंकि इसमें आंतरिक वसा (विसरल फैट) की मात्रा अधिक होती है। यह वसा त्वचा के नीचे नहीं बल्कि आंतरिक अंगों के आसपास जमा होती है, जैसे कि हृदय, लिवर और किडनी।
सेब के आकार और कोलोरेक्टल कैंसर का जोखिम Colorectal Cancer Risk
सेब के आकार की संरचना रखने वाले लोगों में कोलोरेक्टल कैंसर का जोखिम अधिक होता है।
शोध के अनुसार, जो लोग मोटापे से ग्रस्त नहीं हैं लेकिन उनकी कमर चौड़ी है, उनमें कोलोरेक्टल कैंसर का जोखिम 12% अधिक होता है।
यह जोखिम पेट की वसा के कारण होता है, जो शरीर में सूजन और हार्मोनल असंतुलन पैदा करता है।
सामान्य बीएमआई होने पर भी सेब के आकार का प्रभाव
अगर किसी का बीएमआई सामान्य है, फिर भी सेब के आकार की संरचना वाले लोग हृदय रोग और मधुमेह जैसे क्रॉनिक रोगों के जोखिम में रहते हैं।
पुरुषों में सेब के आकार की संरचना अधिक पाई जाती है।
महिलाओं में रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज) के बाद यह संरचना अधिक देखी जाती है।
हृदय रोग और सेब के आकार का संबंध
पेट की वसा से कोलेस्ट्रॉल और ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है, जिससे दिल का दौरा और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।
हर 3.9 इंच कमर की वृद्धि से महिलाओं में हृदय रोग का खतरा 3% और पुरुषों में 4% बढ़ जाता है।
सेब के आकार से बचाव के उपाय
व्यायाम: एरोबिक एक्सरसाइज और वेट ट्रेनिंग पेट की वसा को कम करने में मददगार हैं।
संतुलित आहार: फाइबर और प्रोटीन युक्त आहार का सेवन करें और वसा और शर्करा का सेवन सीमित करें।
तनाव प्रबंधन: तनाव हार्मोन (कॉर्टिसोल) को नियंत्रित करने के लिए योग और ध्यान का सहारा लें।
नियमित जांच: कोलेस्ट्रॉल, शुगर और रक्तचाप की नियमित जांच करवाएं।
Colorectal Cancer : बचाव के उपाय
स्वस्थ आहार:
फाइबर से भरपूर खाद्य पदार्थ, जैसे फल, सब्जियां, और साबुत अनाज का सेवन बढ़ाएं।
रेड मीट और प्रोसेस्ड फूड का सेवन सीमित करें।
शारीरिक गतिविधि बढ़ाएं:
रोजाना कम से कम 30 मिनट व्यायाम करें।
तंबाकू और शराब का त्याग करें।
कम खुराक में एस्पिरिन: शोध बताते हैं कि 5-10 साल तक कम मात्रा में एस्पिरिन लेने से कोलोरेक्टल कैंसर का जोखिम कम हो सकता है।
कोलोरेक्टल कैंसर : नियमित जांच का महत्व
50 वर्ष की उम्र के बाद हर व्यक्ति को कम से कम एक बार कोलोनोस्कोपी करानी चाहिए।
जिनके परिवार में कैंसर का इतिहास है, उन्हें उस उम्र से 10 साल पहले जांच शुरू करनी चाहिए, जिस उम्र में उनके परिजन को कैंसर हुआ था।
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