विशेषज्ञों के मुताबिक बच्चों का स्क्रीन समय मोनिटर करना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना उन्हें खाने की अच्छी आदतें या यातायात सुरक्षा सिखाना। दो वर्ष से कम उम्र के युवाओं को ‘बहुत विशेष मामलों’ में ही उपकरणों के इस्तेमाल की अनुमति दी जाती है, जिसमें सीखने में कठिनाइयां देखने को मिलती है। चिकित्सकों का तर्क कि छोटे बच्चों का दिमाग अभी तक इतना परिपक्व नहीं हुआ।
शोध से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि इससे बच्चों के विकास में नकारात्मक असर देखने को मिल रहे है। बच्चों ने अपनी अलग ही दुनिया बना ली है, वे बहुत ज्यादा चिड़चिड़े हो रहे हैं। उनकी एकाग्रता खराब होती है और व्यवहार में परिवर्तन देखने को मिलते है। वे स्ट्रेस में भी रहते हैं। वहीं सामाजिक कौशल विकसित करने की क्षमता धीमी हो सकती है। ऐसे में उनका स्क्रीन प्रयोग नियंत्रित करना जरूरी होता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2019 में इसी तरह का दिशानिर्देश जारी किया था, जिसमें तीन साल से कम उम्र के बच्चों को टीवी न देखने या टैबलेट पर गेम खेलने के लिए न बैठने की सलाह दी गई थी। संस्था ने कहा कि तीन और चार साल की उम्र वालों को भी दिन में एक घंटे से ज्यादा स्क्रीन पर नहीं रहना चाहिए। कोविड महामारी के दौरान बच्चों का स्क्रीन टाइम बहुत बढ़ गया। जिसका असर अभी तक देखने को रहा है।