चोट लगने पर रक्त धमनियों को नुकसान पहुंचता है जिससे त्वचा के अंदर खून रिसता है और आसपास की कोशिकाओं में फैलता और नीला रंग बन जाता है, लेकिन जब बिना चोट के नीले निशान पड़े तो इसकी वजह एक नहीं कई होती है। बढ़ती उम्र से लेकर शरीर में पोषण की कमी और कई बार ये हेमोफिलिया व कैंसर का भी लक्षण होता है।
जानिए नील पड़ने की ये वजहें
उम्र का भी होता है असर- अगर आप 60 प्लस हैं और आपके स्किन पर ऐसे नील के दाग पड़ रहे तो संभव है ये उम्र का असर हो। बड़ी उम्र में ये नील, लाल रंग से शुरु होकर फिर पर्पल और गहरे नीले में बदलता है और कुछ दिनों में यह गायब भी हो जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि रक्त धमनियां सूरज की रोशनी का सामना करते-करते कमजोर होने लगती है। यह बुढ़ापे में सामान्य बात होती है।
विटामिन के– शरीर में कई बार विटामिन्स और मिनरल की कमी के चलते भी ब्लड क्लॉटिंग की समस्या होती है। कई बार घाव या जख्म भरने में काफी वक्त लग जाता है, क्योंकि विटामिन के शरीर को प्रचुर मात्रा में नहीं मिल पाता। विटामिन के की कमी हो जाना क्योंकि यहीं तत्व खून को जमने में मददगार होता हैं।
विटामिन सी-नील पड़ने की दूसरी वजह विटामिन सी की कमी भी होती है। असल में विटामिन सी रक्त धमनियों को चोटिल होने से बचाता है जब ये शरीर में कम होता है तो हल्की सी चोट जिसे आप महसूस भी नहीं करते उससे नील पड़ जाती है।
जिंक –तीसरी वजह जिंक और आयरन की कमी हो सकती है। जिंक और आयरन की कमी से एनीमिया भी हो जाता है, जिसे भी नील पड़ने का एक बड़ा कारण माना जाता है।
कैंसर और कीमोथेरेपी
कैंसर जैसी बीमारी के लिए जो व्यक्ति कीमोथेरेपी करवा रहा हो तो उनके ब्लड प्लेटलेट्स कम हो जाते हैं जिसके चलते शरीर पर बार-बार नील के निशान दिख सकते हैं।
थ्रोंबोफिलिया के चलते
थ्रोम्बोफिलिया एक ब्लड डिसऑर्डर हैं जिनमें प्लेटलेट्स कम हो जाते हैं, इनके कारण भी शरीर की ब्लड क्लॉट की क्षमता कम हो जाती है जिससे नील के निशान पड़ते हैं।
हीमोफीलिया की वजह से
हीमोफीलिया एक जेनेटिक बीमाीरी है और इसमें एक बार अगर चोट लगने या किसी कारण से ब्लड निकलने लगे तो उसकी क्लॉटिंग नहीं हो पाती। अत्यधिक या बिना वजह से रक्तस्राव या नील पड़ना हीमोफीलिया का एक लक्षण है।
नील पड़ने का एक कारण एहलर्स-डेन्लस सिंड्रोम भी हो सकता हैं। इस समस्या में नील के निशान इसलिए पड़ जाते हैं क्योंकि कोशिकाएं और रक्त धमनियां कमजोर हो जाती हैं और आसानी से टूट जाती हैं। इस बीमारी के मुख्य लक्षण शरीर में अत्यधिक निशान पड़ना, घाव देर से भरना, इंटरनल ब्लीडिंग आदि।
दवाइयां और सप्लीमेंट
खून को पतला करने वाली कुछ दवाइयां खून को जमने से रोकती है जिससे लगातार शरीर पर नील पड़ सकते हैं। इसके अलावा कुछ नैचुरल सप्लीमेंट का अधिक इस्तेमाल भी खून को पतला कर देता है जिससे ब्लड जल्दी जमता नहीं है हालांकि ऐसा कम ही होता है क्योंकि ऐसे सप्लीमेंट लेने से खून पतला तभी होता है जब खून पतला करने वाली दवाओं को इनके साथ ही लिया जाए।
जब नील का निशान बड़ा हो जाए और उस पर बहुत ज्यादा दर्द भी हो जाए या फिर लंबे समय तक निशान
बना रहे तो मेडिकल जांच जरूर करवाएं।
अगर नील के आस-पास इंफेक्शन, पस या बुखार भी हो तो चिकित्सक परामर्श लेना बहुत जरूरी है।
अगर बार-बार निशान पड़ते हैं तो भी एक बार जांच करवाएं और इसका कारण जानें।
(डिस्क्लेमर: आर्टिकल में सुझाए गए टिप्स और सलाह केवल आम जानकारी के लिए दिए गए हैं और इसे आजमाने से पहले किसी पेशेवर चिकित्सक सलाह जरूर लें। किसी भी तरह का फिटनेस प्रोग्राम शुरू करने, एक्सरसाइज करने या डाइट में बदलाव करने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श जरूर लें।)