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स्वास्थ्य

80% मरीज अन्य पैथी में इलाज लेने के बाद होम्योपैथी के लिए आते हैं

इसलिए दवा असर करने में लगती है देरी
होम्योपैथी की शुरुआत वर्ष 1796 में सैमुअल हैनीमैन ने जर्मनी में की थी। विश्व के कई देशों में इसका उपयोग होता है लेकिन भारत इसमें अग्रणी है।
 

Apr 10, 2023 / 03:27 pm

Vanshika Sharma

80% मरीज अन्य पैथी में इलाज लेने के बाद होम्योपैथी के लिए आते हैं

80% मरीज अन्य पैथी में इलाज लेने के बाद होम्योपैथी के लिए आते हैं

होम्योपैथी भी एलोपैथी और आयुर्वेद की तरह एक चिकित्सा सुविधा देती है। यह काफी सस्ती है। इसके बावजूद इसमें 80 फीसदी मरीज तब आते हैं जब वे एलोपैथी या आयुर्वेद आजमा चुके होते हैं। ऐेसे में बीमारी से रिकवर होने में समय लगता है। शुरुआती अवस्था में आने पर इसमें काफी कारगर इलाज है।
होम्योपैथिक के फायदे

यह एक सुरक्षित चिकित्सा पद्धति है। इसकी आदत नहीं पड़ती, गर्भवती व स्तनपान कराने वाली महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों सभी के लिए सुरक्षित है। डायबिटीज या लैक्टोज इंटॉलरेंस में भी ले सकते हैं। होम्योपैथी इस विश्वास पर चलती है कि शरीर खुद को ठीक कर सकता है। दवा कारणों को जड़ से नष्ट करती है। इसमें स्थाई इलाज होता है।
आयुर्वेद की तरह 3 मिआज्म

आयुर्वेद में बीमारी के पीछे प्रवृति को कारण और तीन त्रिदोष बताए गए हैं। वैसे होम्योपैथी में भी तीन मिआज्म सोरा, साइकोसिस और सिफलिस बताया गया है। डॉ. हैनीमैन ने अपने पुस्तक क्रॉनिक डिजीज में लिखा है कि कुछ लोगों और परिवारों में उनकी बीमारी का ‘मूल’ होता है जो इलाज के बावजूद ठीक होने से रोकता है या एक विशेष बीमारी या बीमारी के प्रकार की प्रवृत्ति में वृद्धि करता है। जब तक इसकी जड़ का इलाज नहीं किया जाता और इसे हटाया नहीं जा सकता है। बीमारी जड़ से ठीक हो, इसलिए इलाज लंबा चल सकता है।
दवा की कम डोज, असर ज्यादा

मिनिमम डोज सिद्धांत पर होम्योपैथी काम करती है। इसकी दवाओं के अर्क को मीठी गोली या लिक्विड के रूप में दिया जाता है ताकि कम दवा ही पूरे शरीर में अच्छे से फैले। कम डोज भी ज्यादा असर करती है। कुछ दवाओं को सिर्फ सूंघने के लिए कहा जाता है। यह भी उतनी असरकारी होती है।
ज्यादातर बीमारियों में कारगर:

वैसे तो होम्योपैथी दिनचर्या और मौसमी बीमारियों में सबसे कारगर माना गया है। लेकिन पुरानी और असाध्य बीमारियाें को भी जड़ से ठीक करती है।

दवा बनाने का सिद्धांत
कच्ची औषधियों को घोल के रूप में इसकी दवा तैयार की जाती है। इसकी दवा पोटेंसी में तैयार की जाती है। पोटेंशियाइज्ड दवाएं शरीर की इम्युनिटी मजबूत करती और उत्प्रेरक ग्रंथियों को भी उकसाती हैं ताकि दवा शरीर में ज्यादा अवशोषित हो सकें।
होम्योपैथी की सीमा

इसमें इमरजेंसी यानी एक्सीडेंट, हार्ट अटैक और सर्जरी के लिए विकल्प नहीं हैं। एलोपैथी की तरह इसमें टीकाकरण नहीं है। विटामिन्स और मिनरल्स की गोलियां भी इसमें नहीं होती हैं। शरीर में पोषकता के लिए आहार पर ही निर्भर रहना पड़ता है।
साइड इफेक्ट्स नहीं, हीलिंग क्राइसिस

होम्योपैथी में साइड इफेक्ट नहीं होता है। लेकिन दवाइयों के बाद कुछ लक्षण दिखते हैं जैसे बुखार की दवा के साथ लूज मोशन या उल्टी आदि। इससे शरीर में मौजूद जहरीले तत्त्व बाहर निकलते हैं। इसे हीलिंग क्राइसिस कहते हैं। अधिकतर दवाइयों में इस तरह के भी लक्षण नहीं दिखते हैं।
हर मर्ज की अलग दवा, हिस्ट्री से होती पहचान

एलोपैथी में बुखार के लिए हर व्यक्ति को पैरासिटामॉल देते हैं। होम्योपैथी में बुखार के लिए हर व्यक्ति की दवा अलग-अलग होती है। यह प्रकृति के आधार पर तय की जाती है। जैसे बीमारी का कारण, मरीज की हिस्ट्री, मरीज का व्यवहार, उसकी पसंद- नापसंद, उसकी सोच और मरीज कैसे सपने देखता है आदि।
लहसुन-प्याज पर रोक नहीं, परफ्यूम से बचें

दवा लेने से 30 मिनट पहले या बाद में गंध वाली चीजें जैसे लहसुन-प्याज आदि लेने की सलाह दी जाती है ताकि दवा की गंध और दूसरी चीजों से न मिले। हां, कुछ बीमारियों में कॉफी और परफ्यूम आदि से बचने के लिए सलाह दी जाती है।
क्या जर्मनी की दवाइयां ही बेहतर होती हैं?

ऐसा नहीं है। एक दशक पहले से तक केवल जर्मनी की दवाइयां ही बेहतर होती थीं। अब जर्मन तकनीक से और वहां की कंपनियां भी भारत में दवाइयों का निर्माण कर रही हैं। इसलिए अब अपने देश में बनी होम्योपैथी दवाइयां भी बेहतर परिणाम दे रही हैं।
दूसरी पैथी ले सकते हैं?

हां, होम्योपैथी के साथ दूसरी पैथी ले सकते हैं। लेकिन मेरी सलाह है कि ऐसा करने से बचें ताकि पता चल सके कि कौनसी पैथी असर कर रही है। अगर ले रहे हैं तो दोनों दवाइयों के बीच 40-50 मिनट का अंतर रखें। अपने डॉक्टर को भी बताएं।

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