भारतीय राजनीति में चौधरी चरण सिंह के विरोधी भी उनके व्यक्तित्व और ईमानदारी के कायल रहे। निधन के बाद भी जब किसानों के हित में बात करने की बारी आती है तो सबसे पहला नाम चौधरी चरण सिंह का याद आता है। ‘धरा पुत्र चौधरी चरण सिंह और उनकी विरासत’ किताब के अनुसार चौधरी साहब ने 1970 में जब वह कानपुर के दौरे पर थे तब उन्होंने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देने की घोषणा की थी और उनका स्वाभिमान देखिए, वहीं से उन्होंने सरकारी गाड़ी को वापस भेज दिया और प्राइवेट वाहन से लखनऊ पहुंचे।
हापुड़ के रहने वाले चौधरी चरण सिंह ने इस्तीफा देने के बाद सरकारी बंगला, सरकारी नौकर सब छोड़ दिया। जब उनके गए की बारी आई तो उन्होंने तत्कालीन सूचना निदेशक पंडित बलभद्र प्रसाद मिश्र को बुलाया और कहा “हमारे यहां गाय बेची नहीं जाती इसलिए आप ले जाइए इसे। चौधरी साहब ने 1954 में किसानों के हित में मिट्टी की जांच व्यवस्था शुरू कराई तथा अंग्रेजों के कानून खत्म कराए जिसमें नहर पटरी पर ग्रामीण के चलने पर रोक थी।
चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 को हापुड़ के नूरपुर गांव में हुआ था। मेरठ कॉलेज से कानून की डिग्री प्राप्त की। और आज ही के दिन यानी 29 मई 1987 को पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का निधन होगया।