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हनुमानगढ़

कारगिल दिवस विशेष…जंग जीतने की सूचना मिलते ही उछल पड़े घाटी के जवान

Kargil Vijay Diwas की कुछ यादें हनुमानगढ़ जिले से भी जुड़ी हुई है। कारगिल युद्ध व विजय दिवस के साक्षी रहे रिटायर्ड पैरासूट रेजीमेंट के हवलदार नोहर के जसाना व हाल वार्ड 6 रावतसर निवासी अशोक कुमार जोशी पुत्र श्योलाल जोशी से जब बातचीत हुई तो उन्होंने कई यादें साझा की।

हनुमानगढ़Jul 25, 2024 / 08:51 pm

Purushottam Jha

हनुमानगढ़/ रावतसर. कारगिल विजय दिवस की कुछ यादें हनुमानगढ़ जिले से भी जुड़ी हुई है। कारगिल युद्ध व विजय दिवस के साक्षी रहे रिटायर्ड पैरासूट रेजीमेंट के हवलदार नोहर के जसाना व हाल वार्ड 6 रावतसर निवासी अशोक कुमार जोशी पुत्र श्योलाल जोशी से जब बातचीत हुई तो उन्होंने कई यादें साझा की।
उन्होंने कारगिल युद्ध से जुड़ी अपनी यादों व करगिल युद्ध में उनकी व उनके साथियों की भूमिका के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि उन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए मर मिटने केे जज्बे और जुनून से कारगिल में दुश्मनों को मास्कों पहाड़ी से पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया। अशोक कुमार जोशी पुत्र श्योलाल जोशी सहित उनकी 30 सदस्यों की बटालियन ने 15 दिन में मास्को पहाड़ी को खाली करवाया। कारगिल युद्ध के बारे में बताते हुए अशोक कुमार जोशी में वही जोश व जज्बा देखने को मिला। वह आज भी यही कहते हैं अगर देश के लिए लडऩे का फिर से मौका मिले तो मैं अपने आप को सौभाग्यशाली समझूंगा।
कारगिल युद्ध के पांच वर्ष बाद वर्ष 2004 में रिटायर्ड हुए अशोक कुमार जोशी वर्तमान में रावतसर तहसील के गांव रामपुरा मटोरिया के एसबीआई बैंक में हैड कैशियर के पद पर कार्यरत्त हैं। अशोक कु मार जोशी में आज भी अपने प्रत्येक कार्य में सैेना जैसा अनुशासन व कोई भी कार्य करने में वही जोश व जज्बा है। जिससे लोग उन्हे सभी फौजी साहब के नाम से पुकारते हंै।
अशोक कुमार ने बताया कि वह मई 1999 में 2 माह की छुट्टी पर अपने गांव आए थे तभी उन्हे आदेश मिला की छुिट्टयां रद्द कर दी गई है। देश की सीमा में कुछ आतंकी घुस गए हैं। जिस पर दस दिन बाद ही वापिस ड्यूटी पर अपनी यूनिट पहुंचे। रात्रि लगभग 11 बजे हवाई अड्डे पहुंचे जहां से हथियार व अन्य सामान लोडिंग कर लद्दाख के लिए रवाना हुए। लद्दाख से दराज सेक्टर जाने का आदेश मिला। जहां फायरिंग शुरू थी। कारगिल गांव से थोड़ा आगे पहुंचे तो वहां दराज सेक्टर जाने का रास्ता पूर्णरूप से दुश्मनों द्वारा धवस्त कर दिया गया था।
जहां पाकिस्तानी सेना का कब्जा था। सेना ने दूसरा रास्ता निकाला जहां से रात्रि में दराज सेक्टर पहुंचे। जहां एक सप्ताह की टे्रंनिंग मिली। वहां से मास्को घाटी को खाली करवाने का आदेश मिला। सर्व प्रथम हमारी पैरासूट रेजिमेन्ट यूनिट के 30 सदस्यों ने मास्को घाटी की चढ़ाई शुरू की। जिसमें मैं भी शामिल था। एक दिन व एक रात में मास्को घाटी पहुंचे। जहां ऑक्सीजन का अभाव था, खाने पीने की वस्तुएं भी नहीं थी, घाटी के पहाड़ों पर चढऩे के लिए रास्ता नहीं था। दुश्मन ऊपर की तरफ थे व हम पहाड़ी के नीचे की तरफ थे। दुश्मनों द्वारा लगातार फायरिंग की जा रही थी। अगले दिन सुबह पांच बजे मास्को घाटी पहुंचे। वहां दुश्मनों को पता चल गया।
दुश्मनों ने जमकर गोलाबारी की। जिसमें हमारे दो साथी शहीद हो गए। इसके बाद सेना की अन्य टुकडिय़ां भी मास्को घाटी पहुंच कर पूरी मास्को घाटी को घेर लिया। जवाबी कार्यवाही में गोलीबारी शुरू कर दी। हवाई फायर भी शुरू कर दिए। इससे दुश्मन बौखलाकर वहां से भाग छूटे। इसके बाद हमारी यूनिट व सेना द्वारा तलाशी अभियान शुरू किया गया। इसमें भारी मात्रा में गोला बारूद बरामद हुआ। 15 दिनों की कार्यवाही के बाद मास्को घाटी को खाली करवा तिरंगा झंडा फहरा दिया।
घाटी को भारतीय सेना ने अपने कब्जे में लिया। वहां गाोला बारूद खत्म होने को था। इसके बाद बोफोर्स तोप से पहाड़ी पर हमले किए। इतनी भयंकर गोलीबारी व हमलों से पहाड़ी पूरी थरथर्रा गई। इसके बाद 26 जुलाई को कारगिल युद्ध पर विजय की सूचना मिली। विजय की सूचना मिलते ही पूरी सेना में खुशी का माहौल छा गया।

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