तानसेन की साधना स्थली से सटे प्राचीन शिव मंदिर के पास ही संगीत विद्यालय चलता है। संचालन राजा मानसिंह संगीत एवं कला विवि करता है। विद्यालय में ध्रुपद और शास्त्रीय गायन सीखने 56 विद्यार्थियों का नाम दर्ज है। हालांकि, हर रोज 15-20 विद्यार्थी ही आते हैं। कम रुचि का कारण संसाधनों का घोर अभाव दिखता है। वाद्य यंत्रों के नाम पर केवल एक तबला, एक पुराना सा हारमोनियम और एक पखावज उपलब्ध है। यहां इनके उस्ताद हैं पश्चिम बंगाल के शिवनारायण नाथ।
पत्रिका ने लिया जायजा
देश-दुनिया में बेहद प्रतिष्ठित तानसेन समारोह के इस वर्ष के आयोजन से पहले बुधवार को पत्रिका ने संगीत सम्राट की तपो स्थली का जायला लिया। तैयारियां धीमी चाल में चल रही थीं। रंगाई-पुताई हो रही थी और सड़कों के किनारे से झाडिय़ां हटाई जा रही थीं। पत्रिका ने संगीत विद्यालय का रुख किया तो विद्यार्थियों ने यहां के पत्थरों का जादू और अपना हुनर हमसे साझा किया। पत्थरों से इनकी जुगलबंदी देखते और सुनते ही बनती है।
मिला होगा वरदान
छह साल से ध्रुपद गायन सीख रहे अनिकेत राठौर बताते हैं कि यहां के पत्थरों को संगीत सम्राट से कोई वरदान मिला होगा तभी ये सुरीले हैं। कमलेश शाक्य कहते हैं कि यहां की हवा में ही संगीत घुला-मिला है। हालांकि, संसाधनों की कमी बार-बार उनके चेहरे का उत्साह छीन लेती है।
बिजली तक नहीं
विद्यालय को बिजली भी उपलब्ध नहीं है। शिवनारायण नाथ बताते हैं कि कई बार ग्राम पंचायत से बिजली या केरोसिन की व्यवस्था कराने की बात कही, लेकिन कोई ध्यान नहीं देता। रात के समय पूरा परिसर अंधेरे मेंं डूबा रहता है। तानसेन समारोह का समापन हर साल बेहट में होता है। इसमें इस विद्यालय के छात्र भी प्रस्तुति देते हैं। इस बार भी तैयारी चल रही है। विद्यालय ने अपने विश्वविद्यालय से संगीत समारोह के लिए हारमोनियम, पखावज, तबला, इलेक्ट्रॉनिक तानपुरा मांगा है।