यहां हजीरा स्थित इंटक मैदान में हुई पूर्व रंग गमक की सभा में सूफी संगीत के सुर खूब महके। विख्यात सूफी एवं पाशर्व गायिका ऋचा शर्मा ने जब सूफियाना कलाम के साथ सुर भरे तो प्यार, मोहब्बत, भाई चारे के फूल खिलते चले गए। उन्होंने पंजाबी फोक के साथ फिल्मी पॉप संगीत का भी खूब तडक़ा लगाया। वास्तव में गमक की ये शाम निराली थी। सफेद रंग का लंबा कुर्ता, घुंघराले बाल उस पर कानों में दमकते कुंडल पहने ऋचा शर्मा जब मंच पर गाते हुए अवतरित हुईं तो पाण्डाल में मौजूद तमाम रसिक श्रोता उनके स्वागत में उठकर खड़े हो गए। तालियों की गड़गड़ाहट से उनका अभिवादन किया। ऋचा ने भी हाथ जोड़कर सभी का अभिवादन स्वीकार किया।
आज भी स्टूडेंट हूं, ऐसी पवित्र जगह पर मैं क्या गा पाऊंगी
आते ही उन्होंने सामने बैठे रसिक श्रोताओं से गुफ्तगू शुरू कर दी। बोलीं मैं तो मामूली सी कलाकार हूं, आज भी विद्यार्थी ही हूं, ऐसी पवित्र जगह पर मैं क्या गा पाऊंगी। वैसे तो हम लोग रोज ही इम्तिहान देते हैं पर आज मेरे जीवन का सबसे बड़ा इम्तिहान है। आप सब बड़े जानकार हैं, कृपा कर पास कर दीजिएगा। इसके बाद जब ऋचा ने गाना शुरू किया तो ऐसा गाया कि रसिक मस्ती में डूब गए।
माही वे मोहब्बता सचियां ने मांगदा नसीबा कुछ होर है…
पंजाबी फोक सोंग सोणी आबे माही आबे… को तेज रिदम में गुनगुनाते हुए ऋचा शर्मा गमक के मंच पर प्रस्तुत हुईं। इसके बाद उन्होंने सूफिज्म से बावस्ता अपना प्रसिद्ध गीत सजदा तेरा सजदा दिन रैन करूं… गाकर रसिकों में जोश भर दिया। इसके बाद उन्होंने फिल्म ताल से नीं मैं समझ गई… गीत और माई नेम इज खान फिल्म से सजदा करूं मैं तेरा सजदा, दिन रैन करूं… गीत की रूहदारी से पेशकश दी। इस बीच श्रोताओं से गुफ्तगू करते हुए कहा कि उन्हें पता ही नहीं था कि सूफी कोई गायकी भी होती है। बाद में पता चला कि जब ऊपर वाले से लगन लग जाए तो सूफी गायकी होती है। अगला गीत था – जिंदगी में कोई कभी न आए रब्बा आए तो फिर न जाए रब्बा…और फिर कांटे फिल्म का माही वे मोहब्बता सचियां ने मांगदा नसीबा कुछ होर है… गीत गाकर रसिकों को झूमने पर मजबूर कर दिया।
उन्होंने नुसरत फतेह अली की राग देश पर आधारित ठुमरी मेरा सैयां तो है परदेश… को भी बड़े सलीके से रागदारी से गाया। फिल्म पद्मावत में उनके द्वारा गाई गई प्रसिद्ध ठुमरी जब ऋचा शर्मा ने गमक के मंच पर पेश की तो संपूर्ण प्रांगण पुरविया गायिकी से सराबोर हो गया। ठुमरी के बोल थे होरी आई रे पिया तेरे देश रे…। जैसे जैसे रात परवान चढ़ रही थी वैसे वैसे ऋचा शर्मा की गायिकी का सुरूर भी रसिकों के सिर चढकऱ बोल रहा था।
अपनी गायिकी को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने अमीर खुसरो का प्रसिद्ध कलाम छाप तिलक सब छीनी रे मो से नैना मिलाय के… सुनाकर समा बांध दिया। अमीर खुसरो के इस कलाम की प्रस्तुति में संगीत की नगरी ग्वालियर के सुधीय रसिकों की संगत गजब की रही। रसिकों पर संगीत का खुमार चढ़ा तो ऋचा फिर से ठेठ पुरविया संगीत की ओर लौटीं और रंग सारी गुलाबी चुनरिया… लोकगीत सुनाकर प्रांगण में लोक गायिकी की खुशबू बिखेर दी। इसी कड़ी में उन्होंने प्रसिद्धि लोकगीत गीत नजर लागी राजा तोरे बंगले में… गाया तो श्रोता झूम उठे। इसी भाव में उन्होंने नजर तोरी राजा बड़ी बेईमान है… गाकर रसिकों को फिर से रूमानी कर दिया। इसी क्रम में उन्होंने बागबान फिल्म का अपना सुप्रसिद्ध गीत बाग के हर फूल को समझे बागबान… सुनाया तो रसिक गमगीन हो गए।
इन्होंने की संगत
इस प्रस्तुति में ऋचा शर्मा के साथ की बोर्ड पर उमंग दोषी, अजय सोनी, ड्रम पर जिग्नेश पटेल, बेस गिटार पर गोविंद ग्वाली, गिटार पर समृद्ध मोहंता, परकुशन पर ऋषभ कथक, ढोलक पर नईम सैय्यद, तबले पर प्रशांत सोनग्राही, बांसुरी पर पार्थ शंकर ने साथ दिया जबकि गायन में पारस ने सहयोग किया।
तानसेन नहीं तो अच्छे कानसेन जरूर बनें
गमक कार्यक्रम में क्षेत्रीय सांसद विवेक नारायण शेजवलकर, कलेक्टर अक्षय कुमार सिंह, एसपी राजेश चंदेल और उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी के निदेशक जयंत माधव भिसे ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस अवसर पर बोलते हुए विवेक शेजवलकर ने कहा कि संगीत हो या दूसरी कलाएं वे हमें अच्छा इंसान बनाती हैं। पहले ग्वालियर में हरेक घर में कोई न कोई संगीत अवश्य सीखता था। उन्होंने कहा कि भले ही हम तानसेन न बन पाएं लेकिन अच्छे कानसेन जरूर बनें। उन्होंने कहा कि दुनिया की अगर कोई एक भाषा हो सकती है तो वह संगीत है। उन्होंने उम्मीद जताते हुए कहा की तानसेन समारोह का शताब्दी वर्ष और समारोह और ज्यादा भव्यता से मनेगा। कार्यक्रम का संचालन संस्कृति कर्मी अशोक आनंद ने किया।
– गमक कार्यक्रम में प्रस्तुति देने आई रिचा शर्मा बोलीं अभी भी कई फिल्मों के लिए गा रही गानें
ग्वालियर. ग्वालियर में करीब 20 साल पहले मेरा आना हुआ था, उस समय इतनी फेमस नहीं थी। तानसेन समारोह बड़ा फेस्टिवल है और इसमें परफारमेंस मेरे लिए सौभाग्य की बात है। विश्व विख्यात भजन, सूफियाना व बॉलीवुड गायिका रिचा शर्मा ने पत्रिका प्लस से चर्चा में कहा कि मैं मूलत: यूपी के कासगंज के पटियाली गांव की रहने वाली हूं और गाने से पहले माता के जगराते किया करती थी। माता का जगराता आज भी मेरा पहला प्यार है, हालांकि अब इसे सिलेक्टेड रूप में ही करती हूं। हिंदी फिल्मों के लिए गीत गाना अभी जारी है।
‘नी मैं समझ गई’ गाना बना टर्निंग प्वाइंट
रिचा शर्मा ने बताया कि जब मैं सन 1995 में मुंबई गई, तो इसलिए थी, ताकि वहां अच्छे संगीत निर्देशकों से मिलूं और मुझे अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिले। मैंने कई ऑडिशन्स दिए, पर कहीं से कोई जवाब नहीं मिला। इस दौरान निर्देशक सावन कुमार की एक फिल्म आने वाले थी, जिसके लिए उन्होंने माता की चौकी लगाई। उस माता की चौकी में, मैंने कई भजन गाए। इस दौरान वहां पर आशा भोंसले, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और आदेश श्रीवास्तव जैसे दिग्गज मौजूद थे। सावन कुमार को मेरे भजन पसंद आए, जिसके बाद उन्होंने मुझे अपनी फिल्म ‘सलमा पे दिल आ गया’ में गाने का मौका दिया। लोगों को मेरी आवाज पसंद आई और मुझे कई गाने मिलने लगे। वर्ष 1999 में फिल्म ‘ताल’ में एआर रहमान के लिए ‘नी मैं समझ गई’ जब गाया, तो उसे खूब सराहना मिली। उन्होंने मुझ पर विश्वास किया और वह गाना मेरे लिए टर्निंग प्वॉइंट साबित हुआ।