यहां बनाए गए मानसिंह महल, गूजरी महल, विशाल जैन प्रतिमाओं आदि को देखने आज भी देश-विदेश के पर्यटक आते हैं और उस समय के दौर की शिल्प कला की प्रशंसा किए बिना नहीं रह पाते हैं। राजा मानसिंह धु्रपद के बटारक, प्रचारक और उन्नायक होने के साथ ग्वालियर संगीत घराने के संस्थापक भी। राजा कल्याण सिंह के पुत्र राजा मानसिंह 1486 में ग्वालियर के शासक बने।
अनोखा प्रेमाख्यान बनाया
कहा जाता है कि राजा मानसिंह तोमर शिकार के लिए राई गांव की ओर जाते थे। एक बार मार्ग में दो भैंस लड़ रहे थे और मार्ग अवरूद्ध हो गया था। राजा खड़े हो गए तभी मृगनयनी ने दोनों भैंसों के सींगों को पकड़ कर उन्हें अलग कर दिया। राजा उस बाला की हमुरी और उसके नैसर्गिक सौंदर्य पर मोहित हो गए। उन्होंने शादी का प्रस्ताव रखा। उसके लिए उन्होंने महल में सांक नदी से पानी लाने की व्यवस्था की, क्योंकि उसकी शर्त थी कि वह इसी नदी का पानी पीयेगी। उन्होंने अपनी रानी रानी के निवास के लिए गूजरी महल बने, जो एक अनूठा प्रेम स्मारक है। पहले इसका नाम बादल महल था, बाद में गूजरी महल के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
राजा मानसिंह ने पनिहार ग्राम के निकट ग्राम बरई में एक रास मंडप और रंगमंच बनवाया था। यहां शरद पूर्णिमा की पूर्ण चंद्र धवल चांदनी में कलाकारों द्वारा कृष्ण और गोपियों का रूप धारण कर रास नृत्य-महाराज मानसिंह, उनके कलाकारों, सेनापतियों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता था।
मानसिंह ने जैन धर्म को बढ़ाने के लिए किले पर पहाड़ को तराश कर विशाल मूर्तियां बनवाईं। यहाँ विशाल पद्मासन, खडग़ासन, प्रसिद्ध गोपाचल पर्वत के चारों ओर जैन मूर्तियां हैं, जो विश्व में नहीं हैं। मानसिंह ने सोनेगिर में जैन धर्म के मंदिरों के निर्माण व उत्थान के साथ शिक्षा को भी बहकाया।