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ग्वालियर

ब्रिटिश आर्मी के अफसरों ने बनवाया था ये चर्च, इस सिंधिया शासक ने चढ़ाया था घंटा

आज क्रिसमस के मौके पर हम आपको शहर के क्राइस्ट चर्च के अनछुए पहलुओं से रूबरू करा रहे हैं

ग्वालियरDec 25, 2017 / 01:48 pm

shyamendra parihar

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ग्वालियर। आज क्रिसमस पर पूरे शहर में उल्लास का माहौल है। शहर के सभी चर्चों में विशेष प्रार्थनाएं की गईं। इस मौके पर हम आपको शहर के क्राइस्ट चर्च के अनछुए पहलुओं से रूबरू करा रहे हैं।करीब सवा दो सौ सालों से अधिक प्राचीन मुरार क्राइस्ट चर्च पैसे कलेक्ट कर निर्मित किया गया था। जिसमें मुख्यत: ब्रिटिश आर्मी के अफसर प्रार्थना करने जाया करते थे।

 

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ये चर्च ब्रिटिश आर्किटेक्ट का नायाब नूमना है। जो बलुआ पत्थरों से निर्मित किया गया है। चर्च के फादर एचएन मसीह बताते हैं कि ये चर्च 1775 में तैयार हुआ था। जिसकी पुष्टि 1844 के बंदोवस्त के उस डॉक्युमेंट में होती है। जिसमें कहा गया है कि इस काल में ये करीब 75 वर्ष पुराना है।

 

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पुराना घंटा है आकर्षण
इस चर्च के लिए सिंधिया वंश के महाराजा माधव राव सिंधिया ने घंटा प्रदान किया था। जिसे विशेष अवसरों पर बजाया जाता है। लॉयल्टी कंपनी का ये घंटा जून 1915 में चर्च को भेंट किया गया था। जिसके प्रमाण के लिए बकायद दीवार पर एक लेख लिखा हुआ है। ये घंटे अब 100 वर्ष का हेरिटेज बन चुका है।

 

ये है इतिहास
पहले इसका स्वामित्व चर्च ऑफ इंग्लैंड के हाथों में था। जिसे बाद में इन्होंने चर्च एक्ट 1927 के तहत चर्च ऑफ इंडिया (सीआईपीबीसी) और इंडियन चर्च एक्ट के तहत डाइसिस ऑफ नागपुर को हस्तांतरित कर दिया। जिसके वर्तमान फादर एचएन मसीह पेरिस प्रीस्ट व मेट्रोपोलिटन कमिश्नरी डाइसिस ऑफ नागपुर हैं। जिनका कार्यक्षेत्र मप्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र का विदर्भ क्षेत्र है।

मसीह कहते हैं कि क्राइस्ट चर्च पूरे विश्व में एक जैसे होते हैं। जिनके लेफ्ट में डाइस और राइट में वेबटिज्म (बबिस्तां) करने का स्थान होता है। इनका आर्किटेक्ट भी एक तरह का होता है। ये जमीन तल से सीधे खड़े किए जाते हैं। इनमें कोई बालकनी नहीं होती। चर्च निर्माण में फादर गोम्स ने निभाई थी मुख्य भूमिका देश की आजादी से पहले मुरार ब्रिटिश आर्मी का केंटोमेंट एरिया था। इसलिए यहां से चर्च निर्मित हुआ। जिसमें फादर गोम्स की मुख्य भूमिका रही थी।

इसे एंगलीकरन चर्च ऑफ इंग्लैंड की ओर से ब्रिटिश शासन के प्रोटेस्टन समुदाय के आर्मी में कार्यरत अधिकारियों से पैसे एकत्रित कर तैयार कराया गया था। जब 1857 की पहली क्रांति हुई।तब इसी चर्च के नजदीक रहने वाले अधिकारियों और उनके बच्चों की युद्ध में मौत हो गई थी। जिनकी कब्रें चर्च से करीब दो किलोमीटर दूरी पर बनी हुई हैं। चर्च में उस काल में मारे गए ब्रिटिश अधिकारियों के नाम भी अंकित हैं।

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