ग्वालियर। महापौर रहते हुए पूरन सिंह पलैया ने कभी समाज के गरीब, कमजोर और शोषित वर्ग को नहीं भुलाया। वे इनकी लड़ाई लडऩे के लिए सदैव तत्पर रहे। उनके प्रयासों से संजय नगर, गोल पहाडिय़ा जैसे इलाकों में पेयजल संकट का स्थायी समाधान निकल सका।
कांग्रेस से नहीं लिया टिकट
करीबी साथी रहे रवींद्र सिंह राजपूत बताते हैं, वे सहज व सादगी पसंद थे। भांडेर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा ने उनको टिकट नहीं दिया। उन पर क्षेत्रीय जनता का दबाव था कि वे चुनाव लड़ें। तत्कालीन कलेक्टर टी. धर्माराव के जरिए प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री का उन पर संदेश आया कि वे बात करना चाहते हैं।
पलैया ने कारण पूछा तो उनका कहना था, भांडेर से आपको भाजपा ने टिकट नहीं दिया है, वे आपको भांडेर से कांग्रेस का टिकट देना चाहते हैं। उन्होंने इस पर बिना सोचे इनकार कर दिया। मुख्यमंत्री से उन्होंने साफ शब्दों में यही कहा, मैं भाजपा का निष्ठावान कार्यकर्ता हूं और इसी पार्टी में रहकर मरूंगा।
गरीबों को बसाया
सन् 2000 में महापौर के समय गरीब उनसे मिले और बोले, हम बेघर हैं, कहीं तो हमें बसाएं। उन्होंने गरीबों को गोल पहाडि़या के पास माधव नगर व संजय नगर में बसवाया, आज जहां ज्यादातर गरीब और दलित वर्ग के लोग रहते हैं। बाड़े पर फुटपाथी दुकानदारों को पीढि़यां देकर बसाया। गुमटियां मंजूर कराईं।
गर्म सड़क पर लेटे रहे
गोल पहाडि़या पर पानी की भारी किल्लत हुआ करती थी, वहां के लोग ढोली बुआ के पुल से पानी लाकर अपने घर का गुजारा करते थे। वे उस समय न तो महापौर थे और न पार्षद। जनता को साथ लेकर आंदोलन पर उतर आए और गर्मी के मौसम में सड़क पर लेट गए, जिससे उनकी पीठ पूरी तरह जल गई।
इसके बाद भी वे नहीं उठे, नगर निगम के तत्कालीन प्रशासक ने उनकी मांग को माना और वहां लाइन डलवाई। आज वहां पानी की सप्लाई होने से पेयजल समस्या खत्म हो गई है। वहीं शहर की पेयजल समस्या को महापौर रहते हुए हुडको के जरिए दूर कराया। इस प्रस्ताव के तहत शहर में तीन दर्जन से अधिक टंकियां बनवाईं, जिनसे पानी सप्लाई होने लगा और पेयजल समस्या से काफी लोगों को निजात मिली।
राजनीतिक सफर
सन् 1973 व 1993-94 में पार्षद रहे।
सन् 2000 से सन् 2005 तक महापौर के पद पर रहे।
सन् 1990 में भांडेर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक रहे।
भाजपा संगठन में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे।
बेटे को शुरू से परिश्रम करना सिखाया
15 मई 1941 को जन्मे पलैया के बेटे राजू पलैया ने बताया कि पिता ने उन्हें शुरू से परिश्रम करना सिखाया। ग्वालियर में 15 दिसंबर 2008 में उनका निधन हुआ।
Hindi News / Gwalior / ग्वालियर के पुरखे: पूरन सिंह पलैया को सादगी और निष्ठा ने दिलाया ऊंचा मुकाम