तीन घराने
आधुनिक काल में सितार के तीन घराने अथवा शैलियां इस के वैविध्य को प्रकाशित करते रहे हैं। बाबा अलाउद्दीन खां द्वारा दी गयी तन्त्रकारी शैली जिसे पण्डित रविशंकर निखिल बैनर्जी ने अपनाया दरअसल सेनी घराने की शैली का परिष्कार थी। अपने बाबा द्वारा स्थापित इमदादखानी शैली को मधुरता और कर्णप्रियता से पुष्ट किया उस्ताद विलायत खां ने। पूर्ण रूप से तंत्री वाद्यों के लिए ही वादन शैली मिश्रबानी का निर्माण डॉ लालमणि मिश्र ने किया तथा सैंकडों रागों में हजारों बन्दिशों का निर्माण किया।
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सितार से कुछ बड़ा वाद्य सुर बहार आज भी प्रयोग में है लेकिन सितार से अधिक लोकप्रिय कोई भी वाद्य नहीं है। इसकी ध्वनि को अन्य स्वरूप के वाद्य में उतारने की कई कोशिशें की गईं लेकिन ढांचे में निहित तंत्री खिंचाव एवं ध्वनि परिमार्जन के कारण ठीक वैसा ही माधुर्य प्राप्त नहीं किया जा सका। गिटार की वादन शैली से सितार समान स्वर उत्पन्न करने की सम्भावना रंजन वीणा में कही जाती है किन्तु सितार में प्रहार, अंगुली से खींची मींड की व्यवस्था न हो पाने के कारण सितार जैसी ध्वनि नहीं उत्पन्न होती। मीराबाई कृष्ण भजन में सितार का प्रयोग करती थीं।
प्रसिद्ध सितार वादक: पंडित रविशंकर, उस्ताद लियाकत खां, शुजात खान, पंडित उमाशंकर मिश्रा।