ग्वालियर

Maha Shivratri 2020 : फौज भी नहीं हिला सकी थी अचल बाबा को फिर नाम पड़ा अचलेश्वर महादेव, ऐसी है बाबा की महिमा

महाशिवरात्री पर शहर के विभिन्न मंदिरों में उमड़ेगी भक्तों की भीड़

ग्वालियरFeb 20, 2020 / 08:31 pm

monu sahu

Maha Shivratri 2020 : फौज भी नहीं हिला सकी थी अचल बाबा को फिर नाम पड़ा अचलेश्वर महादेव, ऐसी है बाबा की महिमा

ग्वालियर। ग्वालियर महादेव की भूमि है। यहां कई दिव्य मंदिर है,जहां प्राचीन शिवलिंग हैं और उनसे जुड़ी कई कथाएं भी हैं। ऐसे में 21 फरवरी को महाशिवरात्री है। महाशिवरात्री के इस पावन अवसर पर हम आपको ऐसे ही शिवमंदिरों से रूबरू करा रहे हैं, जो अपने आप में अद्वितीय है। ऐसे ही हैं शहर के अचलेश्वर महादेव मंदिर और कोटेश्वर महादेव मंदिर।
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उमड़ेगी भक्तों की भीड़
ग्वालियर-चंबल संभाग में यूं तो कई शिव मंदिर हैं, पर ग्वालियर शहर में बने अचलेश्वर मंदिर की बात ही कुछ ओर है। स्टेट के समय की अचल बाबा की इस पिंडी के दर्शन के लिए आम दिनों में श्रद्धालु की भीड़ जुटती है। भगवान भूतभावन यानी शिव की उपासना का पर्व महाशिवरात्रि 21 फरवरी को मनाया जा रहा है। फाल्गुन महीने की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है।
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इसे फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। चतुर्दशी तिथि का आरंभ 21 फरवरी शुक्रवार को शाम 5.20 बजे से होगा। चतुर्दशी तिथि 22 फरवरी शाम 7.02 बजे तक रहेगी। आज यानि 21 फरवरी महाशिवरात्रि के दिन शहर के इन दोनों ही मंदिरों पर भारी संख्या में भक्तों की भीड़ बढ़ जाएगी। हालांकि मंदिर की सभी व्यवस्थाओं को श्री अचलेश्वर महादेव सार्वजनिक न्यास की ओर से निर्वहन किया जाता है।
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नाम पड़ा अचलनाथ
भगवान अचलनाथ मंदिर की स्थापना को लेकर कहा जाता है कि सनातन धर्म मंदिर मार्ग के बीचों बीच बने बाबा अचलनाथ की पिंडी को भव्य मंदिर निर्माण के लिए अन्यत्र स्थापित करना चाहते थे। माना जाता है कि शिवलिंग टस से मस नहीं हुआ। यहां तक कि पूरी फौज भी उसे खिसका नहीं सकी। इसलिए उनका नाम पड़ा अचलनाथ, यानी जो अचल है।
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औरंगजेब ने किले से फेंका था कोटेश्वर महादेव को
शि व मंदिरों में कोटेश्वर महादेव का मंदिर भी अपना खासा महत्व रखता है। इस प्राचीन मंदिर के दर्शन मात्र से ही श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। ग्वालियर शहर के विनय नगर सेक्टर चार स्थित कोटेश्वर महादेव मंदिर पर वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
ये है इतिहास
बताया जाता है कि कोटेश्वर महादेव का शिवलिंग ग्वालियर दुर्ग पर था। जब औरंगजेब ने ग्वालियर दुर्ग पर विजय प्राप्त की, दुर्ग पर लगी अन्य देवताओं की मूर्तियों के साथ ही कोटेश्वर महादेव का शिवलिंग भी नीचे फिंकवा दिया। बाद में इसी शिवलिंग को नीचे स्थापित किया गया। बाद में इस मंदिर को संवत 1937-38 में महाराजा जियाजीराव सिंधिया ने भव्यता प्रदान की।
ऐसी है लोगों की आस्था
ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर की रखवाली नागदेवता करते हैं और शिवरात्रि के दिन श्रद्धालुओं को दर्शन भी देते हैं। यहां पूजा-अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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