scriptराजा विक्रमादित्य ने यहां चढ़ाया था 11 बार अपना शीश, जानिये पूरी कहानी | King Vikramaditya cut his head 11 times here, Learn the full story | Patrika News
ग्वालियर

राजा विक्रमादित्य ने यहां चढ़ाया था 11 बार अपना शीश, जानिये पूरी कहानी

कहा जाता है कि अवन्तिकापुरी की रक्षा के लिए देवियों का पहरा रहता है, उनमें से एक हरसिद्धि देवी भी हैं, वहीं शिवपुराण के अनुसार यहां हरसिद्धि देवी की प्रतिमा नहीं है। 

ग्वालियरApr 26, 2016 / 04:10 pm

rishi jaiswal

harsiddhi mata

harsiddhi mata

ग्वालियर। उज्जैन स्थित प्राचीनतम स्थानों में भगवती श्री हरसिद्धिजी का विशेष महत्व है। यहां माता का सुंदर मंदिर चारों ओर मजबूत दीवारों के बीच बना हुआ है। कहा जाता है कि अवन्तिकापुरी की रक्षा के लिए देवियों का पहरा रहता है, उनमें से एक हरसिद्धि देवी भी हैं, वहीं शिवपुराण के अनुसार यहां हरसिद्धि देवी की प्रतिमा नहीं है। माना जाता है कि भगवान विष्णु द्वारा माता सती का शरीर अपने चक्र से छिन्न-भिन्न करने पर यहां माता सती के हाथ की कोहनी गिरी थी। 
 

मान्यता के अनुसार प्राचीनकाल में चण्डमुण्ड नामक दो राक्षस थे। इन दोनों ने समस्त संसार पर अपना आतंक जमा लिया था। एक बार ये दोनों कैलाश पर गए। शिव-पार्वती द्यूत-क्रीड़ा में थे। ये अंदर प्रवेश करने लगे, तो द्वार पर ही नंदी ने उन्हें जाने से रोका, इससे नंदी को उन्होंने शस्त्र से घायल कर दिया। शिवजी ने इस घटना को देखा। तुरंत उन्होंने चंडी का स्मरण किया। देवी के आने पर शंकर ने राक्षसों के वध की आज्ञा दी।
आज्ञा स्वीकार कर देवी ने तत्क्षण उनको यमधाम भेज दिया। शंकरजी के निकट आकर विनम्रता से वध-वृत्त सुनाया। शंकरजी ने प्रसन्नता से कहा- हे चण्डी, तुमने इस दुष्टों का वध किया है अत: लोक-ख्याति में हरसिद्धि नाम प्रसिद्धि करेगा। तभी से इस महाकाल-वन में हरसिद्धि विराजित हैं।

श्रीयंत्र बना हुआ है यहां
मंदिर की चारदीवारी के अंदर द्वार पर सुंदर बंगले बने हुए हैं। बंगले के निकट दक्षिण-पूर्व के कोण में एक बावड़ी बनी हुई है जिसके अंदर एक स्तंभ है। मंदिर के अंदर देवीजी की मूर्ति है। श्रीयंत्र बना हुआ स्थान है। इसी स्थान के पीछे भगवती अन्नपूर्णा की सुंदर प्रतिमा है।


मंदिर के पूर्व द्वार से लगा हुआ सप्तसागर (रुद्रसागर) तालाब है। इस तालाब में किसी समय कमल-पुष्प खिले होते थे। बंगले के निकट एक पुख्ता गुफा बनी हुई है। प्राय: साधक लोग इसमें डेरा लगाए रहते हैं। देवीजी के मंदिर के ठीक सामने बड़े दीप-स्तंभ खड़े हुए हैं। प्रतिवर्ष नवरात्र में 5 दिन तक इन पर प्रदीप-मालाएं लगाई जाती हैं। जिस समय से ये प्रज्वलित होते हैं, उस समय रुद्रसागर में भी इनका दूर तक प्रतिबिम्ब पड़ता है। जो अत्यधिक मोहक होता है। कहा जाता है कि देवीजी सम्राट विक्रमादित्य की आराध्या रही हैं। इस स्थान पर विक्रम ने अनेक वर्षपर्यंत तप किया है।

 
यहां रखे हैं विक्रमादित्य के 11 सिर
मंदिर के पीछे एक कोने में कुछ ‘सिर’ सिन्दूर चढ़े हुए रखे हैं। ये ‘विक्रमादित्य के सिर’ बतलाए जाते हैं। माना जाता है कि राजा विक्रमादित्य ने देवी की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए 11 बार अपने हाथों से अपने मस्तक की बलि की, पर बार-बार सिर आ जाता था। 12वीं बार सिर नहीं आया। यहां शासन संपूर्ण हो गया। इस तरह की पूजा प्रति 12 वर्ष में एक बार की जाती थी।

सामान्यत: शासन 144 वर्ष होता है, किंतु विक्रम का शासनकाल 135 वर्ष माना जाता है। यह देवी वैष्णवी हैं तथा यहां पूजा में बलि नहीं चढ़ाई जाती। ओरछा स्टेट के गजेटियर में लिखा है कि- ‘यशवंतराव होलकर ने 17वीं शताब्दी में ओरछा राज्य पर हमला किया। वहां के लोग जुझौतिये ब्राह्मणों की देवी हरसिद्धि के मंदिर में अरिष्ट निवारणार्थ प्रार्थना कर रहे थे। औचित्य वीरसिंह और उसका लड़का ‘हरदौल’, सवारों की एक टुकड़ी लेकर वहां पहुंचा, मराठों की सेना पर चढ़ाई कर दी, मराठे वहां से भागे, उन्होंने यह समझा कि इनकी विजय का कारण यह देवी हैं, तो फिर वापस लौटकर वहां से वे उस मूर्ति को उठा लाए। वही मू‍र्ति उज्जैन के शिप्रा-तट पर हरसिद्धिजी हैं। परंतु पुराणों में भी हरसिद्धि देवीजी का वर्णन मिलता है अतएव 18वीं शताब्दी की इस घटना का इससे संबंध नहीं मालूम होता। मंदिर के पीछे अगस्तेश्वर का पुरातन सिद्ध-स्थान है। ये महाकालेश्वर के दीवान कहे जाते हैं।

Hindi News / Gwalior / राजा विक्रमादित्य ने यहां चढ़ाया था 11 बार अपना शीश, जानिये पूरी कहानी

ट्रेंडिंग वीडियो