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हालांकि कांग्रेस नेताओं ने इस दौरान अशोक नगर व गुना के बैठक में शामिल हो चुके नेताओं से फीडबैक ले लिया है कि क्या मूड है और क्या सवाल हैं?। लेकिन उससे पहले हम आपको बता दें कि गुना-शिवपुरी संसदीय सीट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया को मिली हार पर कांग्रेसी तो दूर भाजपाई भी भरोसा नहीं कर पा रहे। सिंधिया जैसे कद्दावर नेता को यादव व रघुवंशी ने मिलकर मोदी नाम के सहारे सवा लाख मतों से करारी शिकस्त दे दी। प्रदेश के सबसे बड़े राजनीतिक उलट-फेर का रोचक पहलू यह है कि सिंधिया के विरोधी हुए इन दोनों ही नेताओं ने अपनी राजनीतिक जीवन की शुरुआत ज्योतिरादित्य की छत्रछाया में की थी और जब विरोध में उतरे तो फिर वो कर दिखाया, जिसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। आज भी लोग उधेड़बुन में लगे हैं कि सिंधिया परिवार का मुखिया गुना की अभेद किले जैसी सुरक्षित सीट से कैसे हार गया।
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यादव-रघुवंशी वोटरों वाली है गुना सीट
गुना,अशोकनगर व शिवपुरी जिले की जिन आठ विधानसभाओं से मिलकर गुना संसदीय सीट बनी है,उनमें सबसे अधिक यादव वोटर हैं। जानकारों के अनुसार केपी यादव की जीत में सबसे बड़ा हाथ उनका यादव होना भी रहा है। अभी तक जो यादव वोट एकतरफा सिंधिया को मिला करते थे, वे 80 से 90 फीसदी केपी के पक्ष में गए। सिंधिया महज 10-15 फीसदी यादव वोट ही ले पाए।
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सबसे बड़ा वोट बैंक रघुवंशियों का
यादवों के बाद गुना संसदीय क्षेत्र में रघुवंशी वोटर की संख्या सबसे ज्यादा है। कोलारस से भाजपा विधायक वीरेंद्र रघुवंशी की कोलारस में खासी पकड़ है। संसदीय क्षेत्र की चंदेरी विधानसभा में उनकी ससुराल होने की वजह से उनकी क्षेत्र के रघुवंशियों में अच्छी पकड़ है। विधानसभा चुनाव 2018 में कोलारस सीट से भाजपा के वीरेंद्र रघुवंशी ने महेंद्र यादव (पूर्व विधायक रामसिंह यादव के पुत्र) को लगभग 750 वोट से हरा दिया। इससे पहले महेंद्र यादव को उपचुनाव सिंधिया ने ही जिताया था। कोलारस की हार से सिंधिया कितने आहत हुए कि विधानसभा परिणाम के बाद क्षेत्र में दौरे पर आए तो उन्होंने स्थानीय नेताओं की बैठक में कम से कम तीन बार कोलारस की हार पर चर्चा की। जानकारों के अनुसार सिंधिया किसी भी सूरत में वीरेंद्र रघुवंशी की जीत को पचा नहीं पा रहे थे।
वर्ष 2006-07 में ग्वालियर सांसद रामसेवक बाबूजी को भ्रष्टाचार के कथित आरोप में हटाए जाने से खाली ग्वालियर सीट पर लोकसभा चुनाव लडऩे शिवपुरी विधायक यशोधरा राजे सिंधिया चली गई थीं। तब शिवपुरी विधानसभा सीट के उपचुनाव हुए। यहां कांग्रेस ने वीरेंद्र रघुवंशी को टिकट दिया। भाजपा ने गणेश गौतम (पूर्व कांग्रेस विधायक,वर्तमान में भी कांग्रेसी) को प्रत्याशी बनाया। गणेश को जिताने के लिए पूरी प्रदेश सरकार ने शिवपुरी में डेरा डाल दिया,लेकिन सिंधिया ने पूरी सरकार को शिकस्त दे दी। इस जीत से वीरेंद्र रघुवंशी का कद काफी बढ़ा था।
सिंधिया और रघुवंशी के संबंध वर्ष 2013 में बिगड़े जब विधानसभा चुनाव में शिवपुरी विधानसभा से वीरेंद्र रघुवंशी कांगे्रस के टिकट पर तथा भाजपा से यशोधरा राजे सिंधिया चुनाव लड़ीं। वीरेंद्र मामूली अंतर से चुनाव हार गए। चुनाव हारते ही वीरेंद्र ने सिंधिया पर अपनी बुआ को अंदरूनी सपोर्ट करने का आरोप लगाया। साथ ही हार की समीक्षा करने भोपाल आए आए कांगे्रस अध्यक्ष राहुल गांधी के सामने भी सिंधिया पर खुलकर आरोप लगाए। हालांकि चुनाव में सिंधिया ने वीरेंद्र के समर्थन में पुराने बस स्टैंड पर एक सभा की थी। इसके बाद वीरेंद्र ने कांग्रेस को छोडकऱ भाजपा ज्वाइन की और अब वे कोलारस से भाजपा विधायक हैं।
वीरेंद्र रघुवंशी हों या केपी यादव (वर्तमान गुना सांसद), दोनों ही सिंधिया के कभी इतने नजदीक हुआ करते थे कि क्षेत्र में होने वाली प्रत्येक राजनीतिक गतिविधि की कमान सिंधिया इन्हें ही सौंपते थे। कहते हैं कि इंसान को उससे सबसे अधिक खतरा होता है, जो उसका बहुत नजदीकी होता है, क्योंकि उसे सभी कमजोरियां पता होती हैं। शायद यही वजह रही कि जब दो विरोधी एक साथ जुड़े तो सिंधिया को सवा लाख की करारी शिकस्त झेलनी पड़ी।
– दलित-आदिवासी; 2.50 लाख वोटर
– यादव: लगभग 2 लाख वोटर
– रघुवंशी: लगभग 1.50 वोटर
– लोधी: लगभग 1.25 लाख वोटर – तीनों जिलों में सिंधिया हारे
यादव/रघुवंशी पोलिंग
चंदेरी विधानसभा के ग्राम मेहमदपुर में वीरेंद्र रघुवंशी की ससुराल है तथा वीरेंद्र के अनुसार उनकी तीनों जिलों के रघुवंशी बाहुल्य गांव में रिश्तेदारी है। उनका कहना है कि हमारी पोलिंग से इतनी बढ़त मिली कि सिंधिया उसे कवर नहीं कर पाए।
वीरेंद्र रघुवंशी, कोलारस विधायक