उच्च न्यायालय के इस आदेश से मिल के 8037 कर्मचारियों को निराशा हुई है, जो इस इंतजार में थे कि जमीन को बेचे जाने के बाद उनकी देनदारियों का भुगतान हो सकेगा। न्यायमूर्ति संजय यादव की अध्यक्षता वाली युगलपीठ ने राज्य शासन की याचिका को स्वीकार करते हुए कंपनी जज द्वारा दिए गए आदेश को खारिज कर दिया। कलेक्टर गाइड लाइन के अनुसार इस क्षेत्र में जमीन की कीमत 3000 रुपए स्क्वेयर फीट है। इस लिहाज से यह जमीन 40 अरब से अधिक की होती है।
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मध्यप्रदेश शासन के वाणिज्य एवं उद्योग विभाग द्वारा मैसर्स जीवाजी राव कॉटन मिल्स लिमिटेड के पक्ष में कंपनी जज द्वारा दिए गए आदेश के खिलाफ यह याचिका प्रस्तुत की गई थी। जेसी मिल के बंद होने पर श्रमिकों के भुगतान नहीं हो पाने पर कंपनी की जमीन बेचकर श्रमिकों का भुगतान किए जाने के लिए यहां लिक्विडेटर नियुक्त किया गया था। इस मामले में जेसी मिल एवं श्रमिकों की ओर से न्यायालय में कहा गया था कि यह जमीन कंपनी को दी जा चुकी है, इसलिए इसे सरकार को वापस नहीं लेना चाहिए। इस जमीन को बेचकर मजदूरों के स्वत्वों का भुगतान किया जाना है।
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शासन ने यह कहा
राज्य शासन द्वारा उच्च न्यायालय में प्रस्तुत याचिका में कहा गया कि जेसी मिल को यहां मिल स्थापित करने के लिए पट्टा प्रदान किया गया था। शासन का कहना था मिल बंद होने के बाद जिस उद्देश्य के लिए यह पट्टा दिया गया था, वह विफल हो चुका है, इसलिए नियमों के अनुसार अब यह जमीन शासन की है।
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मिल बंद होने के बाद कंपनी जज ने दिए थे संपत्ति बेचकर भुगतान के आदेश
मिल बंद होने के बाद जहां श्रमिकों ने अपने स्वत्व के भुगतान के लिए आवेदन प्रस्तुत किए थे, वहीं बैंकों ने भी भुगतान के लिए आवेदन प्रस्तुत किए थे। कंपनी जज द्वारा 4 मई 1998 को कुछ शर्तों के साथ मिल को बंद करने के आदेश दिए थे। कंपनी जज ने इसके लिए एक परिसमापक अधिकारी नियुक्त किया था, जिसे कंपनी की संपत्ति अपने अधिकार में लेकर विस्तृत जानकारी देने को कहा था। वहीं इस मामले में कंपनी की संपत्ति बेचकर मजदूरों के भुगतान के आदेश भी दिए गए थे। इस पर परिसमापक अधकारी ने कंपनी की संपत्तियों को अपने कब्जे में ले लिया था। इसके बाद श्रमिकों को कुछ भुगतान भी किया गया। परिसमापक अधिकारी द्वारा दो करोड़ 55 लाख 70 हजार रुपए इक्यूटी शेयर एवं डिबेंचर का भुगतान किया गया।