उन्होंने कहा कि हम प्रश्न तब करते हैं जब दूसरों को गलत साबित करना हो। जब किसी को नीचे दिखाने के लिए शुरूआत होती है, तो आप कभी सफल नहीं हो सकते हैं, जबकि अर्जुन ने गीता उपदेश सुनते वक्त भगवान श्रीकृष्ण से जो प्रश्न किए थे, उनके मूल में जिज्ञासा थी। उन्होंने कहा कि श्रवण से चिंतन और उससे जो सार मिले उसका मनन यानि उसे अपने जीवन में उतारना चाहिए। कथा सुनने जाएं तो कम से कम एक अच्छी बात जरूर जीवन में उतारे।
– बिना पूरी बात सुने किसी को वचन नहीं देना चाहिए।
– मृत्यलोक में दु:ख हैं, खुशियां आपको ढंूढनी हैं।
– आदमी व्यस्त कभी नहीं होता, उसे जो करना है, उसके लिए वो समय निकाल ही लेता है।
– कथा में भी लोग ज्ञान नहीं सुनना चाहते, सिर्फ आनंद लेना चाहते हैं।
– भगवान के 24 अवतार, हर अवतार हमें सीख देता है।
– भीष्म ने अंतिम क्षणों में भगवान का सामीप्य मांगा, आप भी मांग लो तो बेड़ा पार हो जाएगा।
– कोविड व्यक्ति के लिए बुरा लेकिन प्रकृति के लिए वरदान साबित हुआ।
– कलयुग में सिर्फ भगवान का नाम लेना काफी है।
– जीवन जीने हो तो ऐसा जिओ कि आपकी गलती पर भी लोग भरोसा न करें।
रामलीला मैदान, मुरार में चल रही श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह के तृतीय दिन का आरम्भ वैदिक मंत्रोच्चारण और प्रभु के जयकारे से प्रारम्भ हुआ। कथा व्यास आचार्य सतानंद महाराज ने कहा कि मनुष्यों का क्या कर्तव्य है इसका बोध भागवत सुनकर ही होता है। विडम्बना ये है कि मृत्यु निश्चित होने के बाद भी हम उसे स्वीकार नहीं करते हैं। निश्काम भाव से प्रभु का स्मरण करने वाले लोग अपना जन्म और मरण दोनों सुधार लेते हैं। श्रीमद्भागवत कथा जीवन के सत्य का ज्ञान कराने के साथ ही धर्म और अधर्म के बीच के अंतर को बताती है।